नेहरू खान वंश भाग-25
अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
26 मई, 2009 के हस्तक्षेप में राष्ट्रीय सहारा ने सर्व श्री आशीष नंदी, शशि भूषण, विभांशु दिव्याल आदि के स्तम्भ प्रकाशित किए हैं। लेकिन आसन्न संकट को सभी आतंकितों ने जानबूझ कर छिपाया है। सुब्रत सहित स्वयम् यह लोग जीवित नहीं बच सकते। पूरी दुनिया में ईसाई व मुसलमान का राज्य है। क्या मीडिया इस बात के लिए अनुरोध नहीं कर सकती कि ईसाई व मुसलमान हम सांप्रदायिक हिंदुओं को हमारे हाल पर छोड़ कर इस्लामी व ईसाई देशों में चले जाएं?
कुटरचित-परभक्षी भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29(1) प्रत्येक मुसलमान और ईसाई को अपनी संस्कृति को बनाए रखने का असीमित मौलिक अधिकार देता है और मुसलमान व ईसाई की संस्कृति गैर मुसलमान व गैर ईसाई को कत्ल करने, गैर इस्लामी और गैर ईसाई देश को समाप्त करने और गैर मुसलमान व गैर ईसाई नारियों का बलात्कार करने को परम धर्म मानती है।
कल्पना कीजिए! किसी भी मुसलमान या ईसाई को किसका भय है? उनके भगवानों का? वे तो लूट, हत्या व बलात्कार जैसे अपराध करने पर स्वर्ग देते हैं। भारतीय संविधान का? वह तो इन अपराधों को उनकी संस्कृति मान चुका है!! कानून व पुलिस का? वे तो इन देश के हत्यारे अपराधियों को अपनी सुरक्षा में अजान दिलवाते और नमाज पढ़वाते हैं!!!
जजों का? उन्होंने तो स्वीकार कर लिया है कि न्यायपालिका कुरआन व बाइबल के आदेशों के विरुद्ध कोई सुनवाई ही नहीं कर सकती! (एआईआर, 1985, कलकत्ता 104). वे तो जो अजान व नमाज का विरोध करते हैं, उनको जेल भेजते हैं!!!! समाज का? वह तो अज्ञान वश इन कुकर्मों को जिहाद और धार्मिक युद्ध स्वीकार करता है!!!!! मानव जाति के विनाश का संकट आसन्न है। सबकी बुद्धि और विवेक नष्ट हो गई है।
विद्वान अतिरिक्त शेसन जज श्री राजीव मेहरा का निर्णय दिनांक 26.2.2005
भारतीय संविधान ने भारत में मानव मात्र के जीवित रहने के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की हैंः
पहली शर्तः
केवल वे ही जीवित रह सकते हैं, जो मात्र अल्लाह की पूजा करते हैं। इसे प्रातः से रात तक ईमाम लाउडस्पीकर पर चिल्लाता रहता है। अजान भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153 व 295 के अधीन संज्ञेय अपराध है। अजान ईश्वरीय आदेश व संवैधानिक शर्त है। इसे सांप्रदायिक सद्भाव की उपासना के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त धाराओं से सम्बन्धित अभियोगों का संज्ञान लेना प्रेसीडेंट व राज्यपालों के स्वविवेक पर निर्भर है। प्रेसीडेंट व राज्यपालों की नियुक्ति इसलिए हुई है कि किसी भी अजान चिल्लाने वाले इमाम पर अभियोग चलाने की अनुमति न दे। लेकिन जो इस स्थिति का विरोध करे उस पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अंतर्गत अपने कठपुतली जजों को अभियोग चलाने की अनुमति दे। इसके अतिरिक्त जब स्वघोषित मुसलमान आईएसआई एजेंट, मुजाहिद सिमी कार्यकर्ता, संसद पर आक्रमण करने वाला मुसलमान फांसी की सजा भी पा जाए तो उसे बचाने में भरपूर मदद दें। उसे जीवन दान दें। उनके मुकदमें वापस लें। मुसलमान को नारियों के बलात्कार की ईश्वरीय आदेश है और संवैधानिक अधिकार भी।
इसीलिए जब मुसलमानों ने कश्मीरी हिंदुओं को उजाड़ा, नारियों का बलात्कार किया और हिंदुओं की सम्पत्ति पर आजतक काबिज हैं, जम्मू काश्मीर के राज्यपालों ने किसी मुसलमान के विरुद्ध कभी कोई कार्यवाही नहीं की। जजों ने कभी किसी भी मुख्यमंत्री से नहीं कहा कि यदि वह काश्मीर के नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकता तो त्यागपत्र दे दे। लेकिन ज्यों ही जाहिरा व बिलकिस का तथाकथित बलात्कार हुआ, मुख्यमंत्री गुजरात नरेंद्र मोदी को जज वीएन खरे का आदेश हुआ कि यदि वे नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकते तो त्याग पत्र दे दें। इतना ही नहीं कलकत्ता कुरआन याचिका, जो जज खस्तगीर से छीन ली गई थी, के आदेश में बिमल चंद बसक ने जेहोवा, ईसा व अल्लाह को ईश्वर माना है। कुरआन व बाइबल को धर्म पुस्तक माना है और यह व्यवस्था दी है कि कोई जज कुरआन व बाइबल के आदेशों के विरुद्ध कोई सुनवाई ही नहीं कर सकता। मुसलमान के लिए कुरआन के आदेश अत्यंत स्पष्ट हैं। तब तक लड़ो जब तक अंतिम गैर मुसलमान मार न डाला जाए। मेरे विरुद्ध कुरआन व बाइबल का विरोध करने के कारण 50 मुकदमें चले। मात्र 7 शेष हैं।
आप के ईश्वर, आस्था व उपासना स्थल का अपमान करने के बदले में मौलवी व ईमाम 10 अरब रूप्ए वार्षिक वेतन और 4 अरब रू0 हज अनुदान पाते हैं। वह भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 27 का उल्लंघन करते हुए।
दूसरी शर्तः
केवल वे ही जीवित रह सकते हैं, जो ईसा को अपना राजा स्वीकार करते हैं। (बाइबल, लूका 19ः27). यह भी ईश्वरीय आदेश और सांप्रदायिक सद्भाव है। जो ईसा को विरोध करता है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अधीन राज्यपाल की संस्तुति पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153 व 295 के अधीन जेल जाता है। मिजोरम में रियांगो की जाति संहार व नारियों के बलात्कार के बदले में मिजोरम सरकार को शांति पुरस्कार दिया जा चुका है।
तीसरी शर्तः
कोई नागरिक पूंजी, सम्पत्ति, धरती, सोना, खाने और कारखाने नहीं रख सकता। {भारतीय संविधान के नीति निदेषक तत्व. अनुच्छेद-39ग}. यद्यपि सन 1992 ई0 से बाजारी ब्यवस्था लागू है, फिर भी संवैधानिक शर्तें समाप्त नहीं हुई हैं। विशेष बात यह है कि यह स्थिति हिंदू, मुसलमान या ईसाई पर समान रूप से लागू है।
प्रेसीडेंट व राज्यपालों की सेवा शर्तें
मुझे प्रेसीडेंट व राज्यपालों पर तरस आता है। पद ग्रहण करने के पहले ही इनको उस संविधान को बनाए रखने की शपथ लेनी पड़ती है जिसका संकलन ही मानव जाति को डायनासोर की भांति मिटाने के लिए किया गया है। प्रेसीडेंट व राज्यपाल अपनी ही संस्कृति, सम्पत्ति, जीवन, दुधमुहों के जीवन व नारियों के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते, अपने नागरिकों को क्या बचाएंगे?
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष
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