नेहरू खान वंश भाग-26
अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
राज्यपाल जनता के चुने प्रतिनिधि नहीं होते हैं। वर्तमान में यह लोग उस सुपर प्रधानमंत्री एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी द्वारा मनोनीत किए गए हैं - जिस सोनिया का दायित्व व संवैधानिक अधिकार जो भी ईसा को राजा न माने उसे कत्ल कराना है और तभी तक पद पर बने रह सकते हैं, जब तक यह लोग सुपर प्रधानमंत्री एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी का हित साध सकें। सुपर प्रधानमंत्री एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी गौ-मानव भक्षी, (बाइबल, यूहन्ना 6ः53) जेसुइट, मूर्ख, पापी व भेंड़, (बाइबल, उत्पत्ति 2ः17), आमेर खजाने की चोरनी कैथोलिक ईसाई है। चूंकि भारत में आप के पूर्वजों ने ईसा के साम्राज्य का विरोध किया है और भारत का हर गैर-ईसाई आज भी कर रहा है। अतः भारत के नागरिकों की हत्या का सोनिया को ईश्वरीय आदेश (बाइबल, लूका 19ः27) व भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29(1) के अधीन संवैधानिक अधिकार है। भारत आज भी ईसा का उपनिवेश है। {भारतीय संविधान, अनुच्छेद 6 (ब)(।।)} व राष्ट्र कुल का सदस्य भी। आप को यही स्वतंत्रता मिली? हर गैर-ईसाई की हत्या की राज्यपाल ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 के अधीन शपथ ली है।
इसके अतिरिक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 196 व 197 व सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के द्वारा मुसलमानों, ईसाइयों व जनसेवकों को सुरक्षा कवच देकर नागरिकों को दास बनाए रखने, लूटने, जाति संहार करने और नारियों का बलात्कार कराने का उत्तरदायित्व वहन करना प्रेसीडेंट व राज्यपालों का ही कार्य है। राज्यपाल मंदिर तोड़ने वालों, नागरिकों को उनके मातृभूमि से खदेड़ने वालों, नागरिकों की सम्पत्ति पर कब्जा करने वालों और नारियों के बलात्कारियों पर अभियोग नहीं चलवा सकते। विदित हो कि अपराध हुआ या नहीं इसका निर्णय राज्यपाल ही ले सकता है।
कोई नागरिक किसी जनसेवक, मुसलमान या ईसाई को अपराध करने से नहीं रोक सकता। इन्हीं धाराओं का प्रयोग करते हुए राज्यपाल लोग हिंदुओं की हत्याएं, मातृभूमि से निष्कासन, लूट और नारियों का बलात्कार कराते रहते हैं।
जनसेवकों पर नियन्त्रण राज्यपालों के हाथ में ही रहता है। वस्तुतः राज्यपालों के संरक्षण मे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39ग के अधीन भ्रष्टाचार और लूट के लिए ही जनसेवकों की नियुक्ति की जाती है। जब तक जनसेवक जनता को लूट कर राज्यपालों को हिस्सा देता है, अथवा नागरिकों की हत्या करता है, उसे राज्यपाल संरक्षण देता है।
जब जनसेवक हिस्सा देना बंद करता है तो जनसेवक की सम्पत्ति उसके ज्ञात आय स्रोतों से अधिक हो जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के अधीन राज्यपाल उस जनसेवक के विरुद्ध अभियोग चलाने की अनुमति देते हैं। जज वादकारियों को लूटता है। जज बिना राज्यपाल के संस्तुति के किसी जनसेवक, पादरी, इमाम या मौलवी पर अभियोग ही नहीं चला सकता।
वास्तव मेँ भारतीय संविधान, बाइबल व कुरआन का संकलन शासकों व पैगम्बरों द्वारा मानव मात्र को ज्ञात तमाम अनैतिक व अनेश्वरीय कार्यकलापों व गतिविधियों को ईश्वरीय आदेश सिद्ध करने के लिए किया गया है।
जिहाद, मिशन, काश्मीरी पंडितों का काश्मीर से निष्कासन और रियांगों का मिजोरम से निष्कासन, मंदिरों का विध्वंश, उनकी सम्पत्तियों व नारियों की लूट, आतंक के बल पर सम्पत्तियों व नारियों का उपभोग जैसे अपराधों को संरक्षण भारतीय संविधान के अधीन राज्यपालों द्वारा ही मिल रहा है। जज प्रेसीडेंट व राज्यपालों के बंधुआ मजदूर से भी गए बीते हैं। जजों ने संविधान व कानूनों को बनाए रखने की शपथ ले रखी है और संविधान व कानून मानवमात्र को लूटने और सबको अपना दास बनाए रखने के लिए बने हैं।
यद्यपि राज्यपाल जनता के चुने प्रतिनिधि नहीं होते हैं, तथापि अपने प्रदेश के जनता द्वारा चुने गए किसी भी प्रतिनिधि को हटा सकते हैं। अपने प्रदेश की सरकार गिरा सकते हैं।
पुलिस के संरक्षण में अजान दिला कर राज्यपाल आप की आस्था व आप के ईश्वर का अपमान कराते हैं। आईएसआई एजेंटों व सिमी के मुजाहिदों के अभियोग वापस लेते हैं। मृत्युदंड क्षमा करते हैं। नागरिकों की जमीनों के राजस्व अभिलेख में हेरफेर कर नागरिकों की जमीने बेचते हैं। इसीलिए इनको प्रजातंत्र का आदर्श प्रतिनिधि कहा जाता है।
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष