नेहरू खान वंश भाग-17
अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
अजान भारतीय दंड संहिता के धाराओं 153 व 295 के अधीन संज्ञेय अपराध है। अजान मुसलमानों व गैर मुसलमानों के बीच मजहब के आधार पर शत्रुता उत्पन्न करता है। लेकिन नागरिक अथवा जज की परिधि से बाहर है। उपरोक्त धाराओं के अंतर्गत किए गए अपराधों का संज्ञान/संस्तुति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अधीन प्रेसीडेंट या राज्यपाल ही दे सकता है। लेकिन किसी प्रेसीडेंट या राज्यपाल ने सन् 1947 से आज तक किसी अजान लगाने वाले अपराधी इमाम के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153 व 295 के अधीन अभियोग चलाने की संस्तुति नहीं दी, जब कि दिल्ली पुलिस आयुक्त ने भारतीय दंड संहिता के धारा 99 के अंतर्गत सुरक्षा मांगने के कारण मेरे विरुद्ध 153बी व 295ए के अधीन अभियोग चलाए। मै 26.2.2003 को आरोप मुक्त भी हुआ लेकिन अजान आज तक बंद नहीं हुई। स्पष्टतः उपरोक्त धाराओं का दुरुपयोग राज्यपाल वैदिक संस्कृति को मिटाने और इमामों को संरक्षण देने के लिए करते आ रहे हैं। आर्यावर्त सरकार इसे रोकना चाहती है। क्या मीडिया निज हित में आर्यावर्त सरकार का साथ देगी?
क्या आप को यह राज्यपाल का व्यवहार भारतीय दंड संहिता की धारा 108 के अधीन अपराध नहीं लगता कि जो अपराध कर रहा है, उसे तो राज्यपाल संरक्षण देता है और जो पीड़ित व्यक्ति अपराधी का विरोध कर रहा है, उसका उत्पीड़न किया जा रहा है?
मैं जगतगुरु के हाथ का लिखा पत्र सुश्री मायावती के संज्ञान में लाने के लिए संलग्न कर रहा हूं। हम लोग वैदिक संस्कृति की रक्षा हेतु लड़ रहे हैं। जिन लोगों ने सुश्री मायावती को उनके जन्मदिन पर अरबों रूपए दिए हैं-मेरे सारे प्रयास के बाद उनके पास इतना साहस नहीं कि हमारी सहायता कर सकें। स्वयं सुश्री मायावती ने भारतीय संविधान में आस्था व निष्ठा व्यक्त की है। वे सोनिया से अपनी ही रक्षा नहीं कर सकतीं। वे गुप्त रूप से आर्यावर्त सरकार की सहायता कर सकती हैं। ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे। ताकि मानव जाति का कल्याण हो व युगों तक सुश्री मायावती को याद किया जाए। वे यह भी याद रखें कि भारतीय संविधान ने उनकी स्थिति किसान के पशु से भी बुरी कर रखी है। (देखें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 व 39ग). जिस दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अधीन सोनिया द्वारा मनोनीत टी0वी0 राजेश्वर ने सुश्री रीता व श्री वरुण गांधी को जेल भेजा है, उसी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के अधिकार से टी0वी0 राजेश्वर जब चाहे सुश्री मायावती को जेल भेज देगा।
जो दलित कार्ड सुश्री मायावती खेल रही हैं, वही उनके सर्वनाश का कारण बनेगा। राजतंत्र काल में सन 1835 तक मैकाले को पूरे भारत में एक भी दलित या चोर नहीं मिला था। आज उसी भारत में दलितों पर राजनीति हो रही है। वह भी 66 प्रतिशत कार्पोरेट टैक्स लगाकर! जिसे अंततोगत्त्वा दलित ही देता है। स्वयं सोनिया आमेर खजाने की चोरनी है, जिसने अपने मनोनीत भूमाफिया व आतंकवादी राज्यपाल टी0वी0 राजेश्वर द्वारा हुतात्मा रामप्रसाद बिस्मिल का स्मारक ही 33 करोड़ रू0 में बेंच डाला। सुश्री मायावती इसलिए मुख्यमंत्री हैं कि वे प्रदेश को लूट रही हैं। ईसा के शत्रुओं को कत्ल करा रही हैं। जिसदिन उनकी उपयोगिता समाप्त हुई-सत्ता से बाहर होंगी। भगवान परशुराम ने आर्यावर्त सरकार व वैदिक संस्कृति की स्थापना की है। जेल में बंद अमृतानंद ने आर्यावर्त सरकार के महाराज का चयन कर लिया है। राजा धर्म का रक्षक होता है। अपना कल्याण चाहें तो सुश्री मायावती कृपया महाराज के राज्याभिषेक में गुप्त सहयोग दें। अन्यथा उनकी सम्पत्ति सोनिया लूट लेगी।
प्रेसीडेंट व राज्यपालों की सेवा शर्तें
मुझे प्रेसीडेंट व राज्यपालों पर तरस आता है। पद ग्रहण करने के पहले ही इनको उस संविधान को बनाए रखने की शपथ लेनी पड़ती है जिसका संकलन ही मानव जाति को डायनासोर की भांति मिटाने के लिए किया गया है। प्रेसीडेंट व राज्यपाल अपनी ही संस्कृति, सम्पत्ति, जीवन, दुधमुहों के जीवन व नारियों के सम्मान की रक्ष़्ाा नहीं कर सकते, अपने नागरिकों को क्या बचाएंगे?
क्या आर्यों को नहीं लगता कि राज्यपाल सिक्खों के दसो गुरुओं, षिवाजी, चंद्रषेखर व भगत सिंह के अतिरिक्त लाखों गुमनाम शहीदों का अपमान कर रहे हैं? यदि गौ व नर भक्षी चोरनी एंटोनिया माइनो ही इस देष की सुपर प्रधानमंत्री है तो विक्टोरिया में क्या बुराई थी व एलिजाबेथ में क्या बुराई है? क्यों बहाए शहीदों ने रक्त?
सोनिया के ईसा के रूप में मृत्यु तुम्हारी छाती पर बैठी है मानवों! विश्व में एक से बढ़ कर एक आध्यात्मिक त्रिकालदर्शी, योद्धा, समाज सुधारक, चिंतक और संत पैदा हुए, लेकिन किसी ने मानवद्रोही संस्कृतियों यहूदी, ईसाइयत, इस्लाम, मार्क्सवाद और प्रजातंत्र का विरोध नहीं किया। दिखावे के लिए देश में प्रजातंत्र है। लेकिन वस्तुतः यहाँ भारतीय संविधान पर आधारित सोनिया का एकतंत्र है। मताधिकार धोखा है। उपरोक्त स्थिति को बदला नहीं जा सकता।
चुनाव धोखा है!
चुनाव आयोग द्दोखेबाज है, जो प्रत्याषियों को हत्यारों, लुटेरों व बलात्कारियों की संहिता भारतीय संविद्दान की शपथ दिलवाता है! नागरिक देष के सबसे खूंखार माफिया दाउद इब्राहिम के विरुद्ध समाज, पुलिस और जज से षिकायत कर सकते हैं, प्रतिभा, मुलायम, मायावती को सत्ता से वोट के द्वारा हटा सकते हैं। लेकिन नागरिक भारतीय संविद्दान के अनुच्छेदों 29(1), 31 व 39सी को नहीं बदल सकते हैं ? मानव मात्र के समूल नाश का प्रबंध तो अंग्रेजों की कांग्रेस के बनाए भारतीय संविधान ने कर दिया है। ऐसे चुनाव/संविधान का विरोध मीडिया क्यों नहीं करती?
अतः वह उद्देश्य ही, यानी नागरिकों के जान माल की रक्षा, जिसके लिए राज्य की स्थापना की गई, पराजित हो चुका है। बल पूर्वक दूसरे की सम्पत्ति व नारियों पर अधिकार करना, जो घृणित अपराध है व जिनके विरुद्ध सभी राज्यों ने कानून बनाए हैं, मजहबी और सामाजिक कर्तव्य बन गए हैं। अपराधी ईसाई, मुसलमान और मार्क्स के समाजवादी चेले निरपराधों के सम्पत्ति और नारियों की लूट अनैतिक नहीं मानते।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष