Saturday, February 11, 2012

कहाँ है आतंकवाद?




नेहरू खान  वंश भाग-19

अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

ईसाई मुसलमानों का दोहन कर रहे हैं। जब तक मुसलमान गैर मुसलमान को लूटता है, या कत्ल करता है या उनकी नारियों का बलात्कार करता है, वह कार्य जिहाद होता है। जब तक मुसलमान काश्मीर या इजराइल मांगता है। वह जिहाद होता है। जब तक मुसलमान भारतीय व यहूदी सैनिकों पर हमला करता है, वह जिहाद होता है लेकिन ज्यों ही ईसाई मारा जाता है, पेंटागन व लंदन की रेल व बसों पर हमला होता है और मुसलमान अमेरिका व इंग्लैंड मांगता है, वही कार्य आतंकवाद हो जाता है!
काश्मीर व गाजा पट्टी पर समझौता कराने के लिए ईसाई सदैव तत्पर रहते हैं। अल्लाह ने मुसलमानों को विश्व की सारी धरती सौंप रखी है, फिर वे अमेरिका व ब्रिटेन मुसलमानों को क्यों नहीं  सौंप देते?
यहूदीवाद, ईसाइयत व इस्लाम से कोई समझौता नहीं हो सकता। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के चंगुल मे हैं जिसका पेशा ही ठगी है तो आप चाहे कितने ही अच्छे व्यक्ति हैं, आप को धोखा खाना ही खाना है। इनकी मांग कभी समाप्त नहीं होती वह भी दासता की शर्त पर। यहूदी, ईसाई व मुसलमान दूसरों से प्रमाण मांगते हैं, लेकिन वे भूल जाते है कि उनके मजहब प्रमाण मानने वाले को काफिर व सैतान मानते हैं।
ईसाइयत व इस्लाम दोनो ही धर्मान्तरण करने व कराने वाले को कत्ल कराते हैं। (बाइबल, ब्यवस्थाविवरण 136-11) व (कुरआन 458). प्रजातंत्र व भारतीय संविधान ने ईसाइयत व इस्लाम को एक पक्षीय धर्म प्रचार व धर्मान्तरण की आजादी वैदिक संस्कृति को मिटाने के षड़यन्त्र के अधीन दिया हुआ है?
यदि कुरआन, बाइबल व भारतीय संविधान है तो आप, चाहे मुसलमान हों या ईसाई अथवा यहूदी, जीवित नहीं बच सकते। लेकिन सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है। भयानक से भयानक अपराधी भी कोई न कोई गलती कर बैठता है।
भारतीय दंड संहिता से भी एक गलती हो गई है और संसद व विधान सभाओं से भी।
यद्यपि भारतीय संविधान - षडयंत्र के अधीन - इन हत्यारी व लुटेरी संस्कृतियों को, अनुच्छेद 29(1) के अधीन, बनाए रखने का हर मुसलमान व हर ईसाई को असीमित मौलिक अधिकार देता है, तथापि प्रत्येक गैर मुसलमान व गैर ईसाई को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 102105 के अधीन प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार है। यद्यपि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31 सांसदों व भ्रष्टाचारी जजों के सहयोग से कई बार संशोधित हो चुका है, तथापि उपरोक्त धाराएं आज भी प्रभावी हैं। सम्पत्ति के जिस अधिकार को अंग्रेज व संविधान सभा के लोग न लूट पाए, संविधान के अनुच्छेद-31 प्रदत्त उस अधिकार को सांसदों व जजों ने मिल कर आप से लूट लिया। इस प्रकार सविधान के संकलन के साथ ही नागरिकों के उपासना की स्वतंत्रता, जीने का अधिकार व सम्पत्ति रखने का अधिकार तीनो ही समाप्त हो गये!  कोई नारी सुरक्षित न रही! भ्रष्ट व मक्कार मीडिया हमें बताती है कि हम आजाद हैं!
अतः जो संस्कृति मानवमात्र की हत्या और लूट व नारियों के बलात्कार के लिए बनी है, उसे आप धरती से उखाड़ फेंकने में आर्यावर्त को सहयोग दें। यह एकपक्षीय धर्मान्तरण है, जिसमें धर्मान्तरित व्यक्ति विवेकहीन, (बाइबल, उत्पत्ति 217) चरित्रहीन, (बाइबल, याशयाह 1316) हिंसक (कुरआन 839) व दुराचारी (कुरआन 424236) हो जाता है। राज्य का कर्त्तव्य है ऐसे व्यक्ति को दंडित करना। लेकिन इनसे समझौता किया जा रहा है। क्यों कि इन लोगोँ ने स्वस्फूर्त दासता स्वीकार की है। स्वयं आप अकेले अपने अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ सकते। राज्य ही राज्य से लड़ सकता है। अतः मानव मात्र के पास, अपने जान-माल की रक्षा के लिए, आर्यावर्त सरकार के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष