Tuesday, March 13, 2012

नेहरू खान वंश भाग-20



अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

आस्था की स्वतंत्रता या नैतिक पतन




भारतीय संविधान से पोषित इन यानी ईसाइयत, इस्लाम, समाजवाद व लोक लूट तंत्र ने मानव मूल्यों व चरित्र की परिभाषाएं बदल दी हैं। आज विष्व की कोई नारी सुरक्षित नहीं है (बाइबल, याशयाह 1316) व (कुरआन 424236) न किसी का जीवन सुरक्षित है। (बाइबल, लूका 1927) व (कुरआन 817). सम्पति पर व्यक्ति का अधिकार नहीं रहा। (बाइबल ब्यवस्था विवरण 2013-14), (कुरआन 81, 4169) व (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 (अब 20.6.1979 से लुप्त) व 39ग). किसी का उपासना गृह सुरक्षित नहीं। (बाइबल, ब्यवस्थाविवरण, 121-3, अजान व कुरआन 1781). आजादी नहीं {भारतीय संविधान, अनुच्छेद 6 (ब)(।।)} आस्था की आजादी नहीं। (बाइबल, ब्यवस्थाविवरण 136-11) व (कुरआन 458). यहाँ तक कि मानव की आस्थाएं और उनके देवता भी अपमान की सीमा में आ गए हैं। मूसा ने बताया कि जेहोवा ज्वलनषील देवता है (बाइबल, निर्गमन 203)। जेहोवा के अतिरिक्त अन्य देवता की पूजा नहीं हो सकती। ईसा ने स्वयं को मानव मात्र का राजा घोषित कर रखा है। (बाइबल, लूका 1927). जो ईसा को राजा स्वीकार न करे उसे कत्ल करने का प्रत्येक ईसाई को, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29(1) के अधीन, असीमित मौलिक अधिकार है। यही गंगा-यमुनी संस्कृति कही जा रही है। इसी प्रकार प्रत्येक ईमाम भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153295 के प्रावधानों का उल्लंधन करते हुए, अजान व नमाज द्वारा गैर मुसलमानों की आस्था का अपमान करता है, काष्मीर को भारत से अलग करने की मांग करता है-फिर भी पुलिस व प्रषासन अजान व नमाज को बंद कराने की कोई कार्यवाही नहीं कर सकती, क्यों कि ईसाई व मुसलमान को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अधीन राष्ट्रपति, राज्यपाल व जिलाधीश आत्मघात के मूल्य पर संरक्षण देने को विवश हैं। क्यों कि राष्ट्रपति व उसके राज्यपालों ने भारतीय संविधान व कानूनों को बनाए रखने की शपथ ली है। राज्यपालों की एक विशेषता और है। यह लोग जनता के चुने प्रतिनिधि नहीं होते हैं। आज कल यह लोग सुपर प्रधानमंत्री एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी द्वारा मनोनीत किए जा रहे हैं, जो जेसूइट है। जिसे ईसा ने भारत को ईसाई राज्य बनाने का आदेश दिया हुआ है। भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 29 द्वारा सुपर प्रधानमंत्री एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी को भारत में ईसा का राज्य स्थापित करने का मौलिक अधिकार 26 नवम्बर, 1949 से ही दिया हुआ है।
यह संस्कृतियॉ स्वयं अपने अनुयायियों की ही षत्रु हैं। इस्लाम का अल्लाह अपने अनुयायी मुसलमानों से वादे जन्नत की करता है, लेकिन 1400 से अधिक वर्षो से मुसलमानों को कब्र में सड़ा रहा है और आगे कयामत तक सड़ाएगा। ईष्वर जन्म मरण से मुक्ति (मोक्ष) देता है अथवा तुरन्त पुनर्जन्म और ईसा अनन्त जीवन (कब्र में)! ईसा मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देता उसे पापी भेंड़ में परिवर्तित कर देता है। ईसा का बाप जेहोवा विवेक का परम शत्रु है। बाइबल, उत्पत्ति 217. निज हित में ईसाइयों व मुसलमानों को चाहिए कि वे स्वयं मानवता के प्रति अपराध न करें। मुसलमानों को यह याद रखना चाहिए कि उनका आखिरी पैगम्बर अभी तक मुसलमानों को विष्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी ही बना सका है। ओसामा बिन लादेन ने 11 सितम्बर, 2001 से ही उनके जीवन व साम्राज्य को खतरें में डाल दिया है। 

तथाकथित जनसेवको ँ (सर्वहारा तानाषाहोँ) की बुद्धि पर तरस आता है। वे लुटने के लिए लूट रहे है । इतना ही नहीँ, वे स्वेच्छा से अपनी कब्र खोद रहे है । स्वयम् सत्ता के सर्वोच्च षिखर पर बैठा अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा भी सुरक्षित नही ँ है। अपनी जीविका के लिए वे स्वेच्छा से अपनी स्वतंत्रता, अपना जीवन, अपनी नारियां और अपना धन दांव पर लगा रहे है । उन्हेँ चाहिए कि वे ईष्वर की षरण मे  आएं। मात्र ईष्वर ही उनको दासता से मुक्ति, (गीता 721) सम्पत्ति का अधिकार, (मनुस्मृति 8308) और नारियो को सम्मान दे सकता है। 

समाजवादी, ईसाई व मुसलमान समझें कि वे अज्ञान के स्वर्ग मेँ जी रहे हैँ. विश्वास की दुनियाँ मेँ चाहे जो भी खूबियाँ हों, वे ईश्वर प्रदत्त अपने ज्ञान का प्रयोग नहीँ कर सकते। तर्क का उपयोग व ज्ञान का फल खाना ईसाइयत व इस्लाम मेँ निषिद्ध है। (बाइबल, उत्पत्ति 217) व (कुरआन 5101102). तर्क व विश्वास एक दूसरे के विरोधी हैँ। जहाँ आप ने तार्किक विचार करना प्रारम्भ कर दिया, ईसाइयत व इस्लाम की बालू की दीवाल ढह जाएगी।

मानव को प्रकृति से प्राप्त संदेह ईश्वर प्रदत्त अनमोल निधि है। जिनके पास यह अनमोल निधि है, वे ही स्वतंत्र चिंतन करते हैँ। संदेह मानव को अन्वेषण की ओर आकर्षित करती है। स्वतंत्र चिंतन इसकी मौलिक आवश्यकता है। इसी के बल पर तमाम वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैँ। इसके विरुद्ध विश्वास मानव को अज्ञानी बनाए रखता है। लेकिन ईसाइयत व इस्लाम मेँ तर्क व संदेह के लिए कोई स्थान नही ँ। संदेह व तर्क मात्र वैदिक संस्कृति मेँ स्वीकार्य है।
वर्तमान सभ्यता, ज्ञान व विज्ञान उन लोगोँ की देन है जिन्होंने संदेह किया, न कि उन लोगोँ की, जिन्होंने विश्वास किया। विश्वासी तो पैदा हुए और दासता मेँ जीवन बिता कर नर्क मेँ गए। संसार के विकास मेँ उनका कोई योगदान नहीँ। जब कि मानवता के विनाश के लिए विश्वास ही उत्तरदायी है।

समाजवादी, ईसाई व मुसलमान विचार करें। वे शासकों, मिशनरियों, पादरियों, मौलवियों व इमामों द्वारा ठगे जा रहे हैँ। मानव समाज भूल वश आज भी विश्वास को सम्मान दे रहा है और संदेह से अकारण घृणा कर रहा है। संदेह से घृणा की यह महामारी मजहब के आड़ मेँ तमाम निर्दोषों की हत्या, संस्कृतियों के विनाश, नारियों के बलात्कार व बच्चों को दास बना कर बेचे जाने का कारण बन रही है। मानव अपने मिथ्या मूल्यों से चिपका हुआ है। विश्वास का सीधा मतलब है बिना प्रमाण के श्रद्धा। जब कि भोलापन का मतलब भी बिना प्रमाण के श्रद्धा है, जो मानव के ठगे जाने का कारण है। ऐसे विश्वास पर मानव गर्व कैसे कर सकता है?

क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष