Saturday, March 17, 2012

नेहरू खान वंश भाग-22


अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी


प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय



मुसलमान व ईसाई विचार करें


मै घोर सांप्रदायिक वैदिक संस्कृति का अनुयायी हूँ। मुसलमानों व ईसाइयों के अनुसार मेरे पूर्वजों ने अनुसूचित जातियों का शोषण किया और यातनाएँ दीं। मैने अपनी पुस्तक अजानमें मैकाले द्वारा स्वीकार किए गए तथ्यों को उद्धृत किया है। जिसमें स्वयम् मैकाले के अनुसार सन 1835 के पूर्व भारत में कोई अनुसूचित, भिखारी या चोर था ही नहीं! अनुसूचित जाति के मेरे एक मित्र प्रदीप गौतम हैं। गौतम उनका गोत्र है। मेरे ननिहाल के लोग भी गौतम मिश्र हैं। यानी एक शोषक वर्ग का ब्राह्मण और दूसरा शोषित वर्ग का हरिजन। यह समझ से परे है कि हमारे बीच रहने वाले अनुसूचित जाति के शोषित लोग तो अपना मूल गोत्र व संस्कृति बचाए हुए हैं लेकिन आज से 2009 वर्ष पूर्व ईसाइयत नहीं थी और न 1430 वर्ष पूर्व इस्लाम था। किसी भी मुसलमान व ईसाई को यह भी नहीं मालूम कि उनके पूर्वज कौन थे? उनका मूल धर्म क्या था? जिस प्रकार आज वे आतंक, लूट व वासना के लोभ में शासकों व पुरोहितों के दास बने हुए हैं, उसी प्रकार उनके पूर्वजों को भी अपना मूल धर्म छोड़ना पड़ा था। क्या मुसलमान व ईसाई इस्लाम व ईसाइयत से अपने पूर्वजों का बदला लेना नहीं चाहेंगे, ताकि मानव जाति को बचाया जा सके?

चरित्र की नई परिभाषाएं

ईसाइयत, इस्लाम, समाजवाद और प्रजातंत्र अपने अनुयायियों में अपराध बोध को मिटा देते हैं। ज्यों ही कोई व्यक्ति इन मजहबों या कार्लमार्क्स के समाजवाद अथवा प्रजातंत्र में परिवर्तित हो जाता है, उसके लिए लूट, हत्या, बलात्कार, दूसरों को दास बनाना, गाय खाना, आदमी खाना आदि अपराध नहीँ रह जाता, अपितु वह जीविका, मुक्ति, स्वर्ग व गाजी की उपाधि का सरल उपाय बन जाता है। जले पर नमक छिड़कने के लिए इन्हीं पुस्तकों को ईसाई व मुसलमान धर्म पुस्तक कहते हैं। यदि ये धर्म पुस्तकें हैं तो फिर अधर्म व अपराध क्या है? यदि सम्पत्ति समाज की है तो समाज लुटेरा क्यों नहीं


ऐसे समाज के पास सदाचार कहां है? जिस समाज के पास सदाचार नहीँ है वह भ्रष्टाचार कैसे मिटाएगा? अल्लाह व जेहोवा महान इसलिए हैं कि उन्होंने लूट, हत्या, बलात्कार, दूसरे की मातृभूमि पर बलपूर्वक अधिकार और धर्मान्तरण और राष्ट्रन्तरण के बदले अपने अनुयायियों को जीविका, जन्नत और गाजी की उपाधि दे दिया है।
ऐसे प्रजातंत्र को ले कर हम क्या करेंगे जो इस देश मेँ एक भी ऐसा व्यक्ति न पैदा कर सका, जो इस देश का प्रधानमंत्री, सुपर प्रधानमंत्री या प्रेसीडेंट बन सके। हमेँ अपने लुटेरे, हत्यारे व बलात्कारी शासक आयात करने पड़ रहे हैँ!
कुछ इस्लाम व ईसाइयत परस्त बहुरूपिए हिंदू और सिक्ख के भेष में भारत में घुस आए हैं। वे अत्यंत उच्च पदों पर विराजमान हैं और गैर मुसलमान समाज व भारत को समूल नष्ट करने के लिए एड़ी से चोटी तक प्रयत्न कर रहे हैं। उनमें कुलदीप नैयर, खुशवंत सिंह, इंद्र कुमार गुजराल और लाल कृष्ण अडवाणी के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें एक समानता है। जब इन बहुरूपियों पर अल्लाह और इस्लाम का हमला हुआ, इनको भारत ही शरण के लिए दिखाई दिया। यह लोग इस्लाम और अल्लाह के गुणगान करते नहीँ अघाते। यह समझ से परे है कि यदि इस्लाम इतना ही अच्छा है तेा यह लोग पाकिस्तान या दूसरे इस्लामी देशों में क्यों नहीँ चले जाते? पाकिस्तान से भाग कर यह लोग भारत आए हैं। यहाँ से भाग कर कहां जाएंगे?


मात्र यही लोग नहीं, आशाराम बापू, मुरारी बापू जैसे धर्मोपदेशक हिंदू मुस्लिम एकता की बात करते हैं। सर्वधर्म समभाव के सम्मेलन व यज्ञ करते हैं। इन्हें यह बात समझ नही ँ आती कि यदि आर्य जाति मिट गई तो इनके प्रवचन सुनने वाला कौन होगा? कौन कहने वाला मिलेगा, ‘सब धर्म समान हैं’; ‘हिंदू मुस्लिम भाई भाई हैं’; ‘भारत पंथनिरपेक्ष देश है’; ‘मजदूर का कोई मजहब नहीँ होता’ ‘हमें रोटी चाहिए मंदिर नहींऐसे बकवास पाकिस्तान और बंगलादेश में कोई नहीँ करता। इनके जैसे ही कतिपय गुरुओं और उपदेशकों, जिनमें ठाकुर बालक ब्रह्मचारी, का नाम उल्लेखनीय है, पर जब इस्लामी आक्रमण हुआ तो यह बाल बाल बचे और भाग कर भारत आ गए। इन्होंने अपने शिष्यों को बचाना तो दूर, यह उनकी सहायता भी न कर सके। अपमानित हो कर भी वे अपनी आदत से बाज न आए।
भारत आते ही उन्होंने ग्रामोफोन का रिकार्ड बनवा डाला जिसकी शुरुआत ही अल्लाहु अक्बरसे होती है। यह लोग गैर मुसलमानों को बताते हैं कि अल्लाह और ईश्वर एक हैं। राम ही रहीम हैं और कृष्ण ही करीम। अल्लाह और ईश्वर, राम और रहीम, कृष्ण और करीम का सहअस्तित्व पाकिस्तान, कश्मीर और बंगलादेश में सम्भव न हुआ। अल्लाह के ईश्वरीय आदेश से (कुरआन 839) अल्लाह के अनुयायियों ने जिन्हें उनकी अपनी मातृभूमि से ठोकरें मार कर भगा दिया, उनकी आखों के सामने उनकी बहन बेटियों का बलात्कार किया, (कुरआन 424236) उनके दुधमुहें बच्चों को कत्ल किया और उनकी पुस्त दर पुस्त संचित संपत्ति को लूट लिया (कुरआन 8141) वे ही लोग इन आतताइयों के गुणगान करते हैं। सम्पादक जी! आप ही बताएं इनसे बढ़कर आत्मघाती, राष्ट्रघाती और नीच व्यक्ति कौन हो सकते हैं?
गैर मुसलमान समाज को इन शत्रुओं को अच्छी तरह परखना चाहिए। इनकी गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए। यह लोग इस्लाम परस्त हैं, जिसे मिटाया न गया तो गैर मुसलमान जातियों का अस्तित्व मिट जाएगा। मात्र आर्य ही नहीँ स्वयं यह लोग यानी ईसाई व मुसलमान भी जीवित न बचेंगे। क्यों कि अभी यह निर्णय नहीँ हो सका है कि अल्लाह बड़ा है या जेहोवा? अभी यह लोग आर्य जाति और वैदिक संस्कृति को मिटाने के लिए एकजुट हुए हैं। 


लेकिन मैं, आप, गैरमुसलमान व श्री कुलदीप मात्र अल्लाह की पूजा नही करते। अतः आप को ही नहीँ ईसाइयों व गैरमुसलमानों को भी कत्ल होना है। फिर भी धार्मिक कट्टर हिंदू हैं-मुसलमान व ईसाई नहीं! आप की आत्मघात व राष्ट्रघात की नीति अत्यंत सराहनीय है। बधाई! क्यों कि आप मुसलमानों की नमाज को पूजा मानते हैं और मस्जिदों को जहां यही हत्यारा, लुटेरा और बलात्कारी अल्लाह महान कहा जाता है, पूजास्थल मानते हैं। सुनें! आप की सबेरे की नींद हराम करने वाली लाउडस्पीकर की आवाज, ‘‘अल्लाहु अक्बर’’ यानी अल्लाह सबसे महान है। अजान व नमाज का अंश भी जान लें, ‘मात्र अल्लाह की पूजा हो सकती है...इस नमाज को आप लोग सांप्रदायिक पूजा नहीँ मानते। अलबत्ता जो इसके विरुद्ध कुछ लिखे उसे आप भादंसं की धारा 153, 295 या 506 का अभियुक्त बनवा देते हैं। क्यों कि इसी इस्लाम को आप भारतीय गंगा जमुनी संस्कृति का अभिन्न अंग मानते है। इसी संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रत्येक मुसलमान को भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29(1) असीमित मौलिक अधिकार देता है। जिस पर किसी का जोर नहीं! आप व श्री कुलदीप का धार्मिक कट्टरता से संघर्ष का संकल्प व प्रयोग अनूठा है।
आप अपराधी हैं ईसाइयों के यदि आप गैरईसाई हैं और मुसलमानों के भी यदि आप गैरमुसलमान हैं। या तो आप मात्र अल्लाह की पूजा नही ँ करते हैं (कुरआन 2198 व नमाज) अथवा ईसा को अपना राजा स्वीकार नही ँ करते हैं। (बाइबल, लूकाः1927). आज तक यह निर्णय नहीँ हो पाया कि इन अपराधी देवताओं में कौन असली है जब कि सब अपने देवताओं को सर्वोच्च बताते हैं। अतः यदि वैदिक संस्कृति न बची तो ये स्वयं आपस में लड़ कर डाइनासोर की भांति मिट जाएंगे।
श्री कुलदीप नैयर शरणार्थी हैं। मेरे पत्रों के प्रतिवाद में कुछ भी लिखना आप लोग उचित नही ँ समझते। ऐसे पत्रों को आप गृहमंत्री और मुसलमानों के स्वसुर अडवाणी के पुलिस के पास भेजते रहे हैं। श्री कुलदीप नैयर ने लिखा है कि किसी भी बातचीत में विश्वास ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है। लेकिन हमारे विश्वास को लोकतंत्र सदा से ठगता आया है। श्री कुलदीप नैयर का मूल निवास पाकिस्तान है। लेकिन यह व्यक्ति आज तक पाकिस्तान के गठन को विवादित नहीँ मानता। इस व्यक्ति को अपने मातृभूमि से तनिक भी लगाव नहीं। जो व्यक्ति अपने मातृभूमि का ही नहीँवह हमारा क्या होगा? इसके विपरीत जो भी व्यक्ति पाकिस्तान को विवादित मानता है। उसे आप जेल भिजवाते हैं।
क्यों कि आप डाकुओं के अभयारण्य संसद में बैठते हैं। आप व यह व्यक्ति अजान और नमाज को अपराध नहीँ मानते। पाकिस्तान गांधी की लाश पर बन रहा था। आज वही व्यक्ति जिसने पाकिस्तान बनवाया और उसे 55 करोड़ रूपए इनाम दिलवाया, आप का राष्ट्रपिता है! यह समझ में नहीँ आता कि आप लोगोँ को हमारी वल्दियत तय करने व हमारी माताओं को ब्यभिचारिणी घोषित करने का अधिकार कहां से मिल गया?

 सोनिया सत्ता में क्यों?  काबा मूर्तिपूजकों की है। कुरआन लूट संहिता है। अजान गैर मुसलमान के आस्था का अपमान है। 

क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष