Tuesday, March 20, 2012

सोनिया गांधी के नेतृत्‍व में हिन्‍दुओं को हर तरफ से समाप्‍त किया जा रहा है



समलैंगिक दुराचार को कानूनी मान्यता

नेहरू खान  वंश भाग-23

अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी


प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

भारत में समलैंगिक दुराचार की नींव उसी दिन पड़ गई, जिस दिन सोनिया द्वारा मनोनीत आर्थिक ठगिनी प्रतिभा भारत की राष्ट्रपति बनी यानी भारत मां की नारी पति बन गई। 

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुसलमान ई00 712 से ही मंदिर तोड़ते, नारियों का बलात्कार करते और लूटते रहे लेकिन फिर भी भारत 1835 तक सोने की चिड़िया व चरित्रवान रहा। तब एक भी गरीब नहीं था। आज गरीबी मिटाई जा रही है। वह भी कार्पोरेट टैक्स ले कर! तब एक भी चोर नहीं था, आज स्वयं जज चोर हैं। मैकाले की ईसाइयत ने ही हमारा चारित्रिक पतन किया। फिर भी अभी हमारा पूर्णरूपेण पतन नहीं हो पाया है। आज भी हमारे यहां साले, बहनोई, फूफे, बुआएँ, मामा, मामी, मौसी, मौसे आदि पाए जाते हैं।
हमारे देश में धर्मान्तरित ईसाइयों के यहां भी कुमारी माताएँ नहीं पाई जातीं। छात्राओं को गर्भ निरोधक गोलियां खिलाने की सरकारी प्रथा हमारे यहां नहीं है। भारत में ईसाई परिवार की कन्याएँ भी आज भी 13 वर्ष से कम आयु में बिना विवाह गर्भवती नहीं होतीं। भारत की सरकारों ने आज तक पुरुष समलैंगिक व नारी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी थी। ऐसे में ईसाइयत संस्कृति की महानता सिद्ध नहीं हो पाती है। एंटोनिया मैकाले के मिशन को पूरा करने के लिए भारत में सत्ता के शिखर पर बैठी है। अतएव सोनिया के कठपुतली दिल्ली उच्च न्यायालय के जजों ने सहमति से समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। जो कुकर्म पशु भी नहीं करते- अब सोनिया करा रही है। वह भी कठपुतली जजों के पीठ से!
भारतीय संविद्दान के अनुच्छेद 31 प्रदत्त सम्पत्ति के जिस मौलिक अधिकार को अंग्रेज व संविधान सभा के लोग न लूट पाए, उस अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय ने शंकरी प्रसाद सिंहदेव के मामले में, 1951 में ही संसद द्वारा छीना जाना, अपने जहरीले दांत दिखाते हुए, न्याय बताया। (एआईआर 1951 एससी 458. 1952 एससीआर 89). कोई जज कुरआन व बाइबल के आदेशों के विरुद्ध कोई सुनवाई नहीँ कर सकता (एआईआर, 1985, कलकत्ता 104).
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई की तारीख तब लगती है जब रजिस्ट्रार लिस्टिंग 500 रूपए रिश्वत ले लेता है। निचली अदालतों में चपरासी पुकार के लिए 10 रूपए रिश्वत लेता है। वस्तुतः जनसेवकों की नियुक्ति ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39, जिसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाता, के अधीन नागरिकों की सम्पत्ति व पूंजी लूटने के लिए की जाती है। अघोषित शर्त यह है कि जनसेवक इस लूट का हिस्सा सोनिया द्वारा मनोनीत और महाभ्रष्ट भूमाफिया राज्यपाल को देगा।

 इस लूट के बंदरबांट के नियंत्रण के लिए राज्यपाल के पास कुछ विशेषाधिकार हैं। उनमें से दंड प्रक्रिया संहिता की धाराएँ 196197 और व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 80 उल्लेखनीय हैं। इन्हीं धाराओं के अधीन राज्यपाल जनसेवकों का भयादोहन करता है। जनसेवक नागरिकों को लूटने, कत्ल करने और नारियों का बलात्कार करने के लिए विवश है। जो जनसेवक नागरिकों को नहीं लूटता उसकी सम्पत्ति उसके ज्ञात आय स्रोतों से अधिक हो जाती है और राज्यपाल उपरोक्त धाराओं के अधीन जनसेवक पर अभियोग चलाने की तुरंत संस्तुति देता है। अतएव जनसेवक तभी तक सेवा कर सकता है जब तक वह आत्मघात व मानव घात करता रहे। भला इन जजों से अधिक आत्मघाती व भ्रष्ट कौन हो सकता है?
इसके साथ ही सबकी जमीनें, सोना, बैंक में जमा धन, खाने, कारखाने सभी डाकू प्रजातंत्र ने लूट लिए। आतताई प्रजातंत्र ने जजों से मिल कर सारे समाज को भ्रष्ट लुटेरा बना डाला। चरित्रहीन समाज को अपराधी प्रजातंत्र के अपराध दिखाई ही नहीँ देते। सरकारें नागरिकों के जान माल के रक्षा के लिए बनती हैं। लुटेरों व हत्यारों को सत्ता में रहने का क्या अधिकार?

अब एक कमी है। सर्वोच्च न्यायालय लगे हाथ भारत में कुमारी माताओं को पुरष्कार देने की घोषणा कर दे। जो नारियां विवाह करें उनको मृत्यु दंड देने का कानून पास कर दे।
मुसलमानों के अल्पसंख्यक घोषित होते ही देश के बंटवारे और 35 लाख से अधिक लोगों के नरसंहार व मातृभूमि के निष्कासन के मुसलमानों के पाप व अपराध धुल गए। अब उनको पुनः आरक्षण दिया जा रहा है और देश के संसाधनों पर अधिकार भी। देने वाला वह मनमोहन है जो इस्लाम से सर्वाधिक पीड़ित हुआ। नागरिक विचार करें क्या इस्लाम व ईसाइयत के अस्तित्व में रहते मानव जाति बचेगी?

1947 में सत्ता हस्तांतरण के समय देश के खजाने में 155 करोड़ रूपए थे। देश पर कोई विदेशी ऋण नहीं था। आज देश पर 6 लाख करोड़ रू0 से अधिक ऋण है और यह ऋण तब है जब प्रजातंत्र ने 98 प्रतिशत आयकर, 345 प्रतिशत सीमाकर और बिक्रीकर लगाए। मंदिर लूटे। नागरिकों का सोना लूटा। बैंक लूटा। जमींदारी, जमीनें, कारखाने, खानें, डाकतार, संचार और रेल सेवाएं लूटीं। कहां गई देश की सम्पत्ति? क्या प्रजातंत्र देश को दिवालिया बनाने के लिए उत्तरदायी नहीं है? क्यों रहे ऐसा प्रजातंत्र?
राष्ट्रीयकरण विफल हो गया। लेकिन जिनसे लूटा गया उनको उनकी सम्पत्ति वापस नहीं की गई। अब लूटी गई सम्पत्तियां विदेशी कम्पनियों को कौड़ियों के भाव बेंची जा रही हैं। हम एक ईस्ट इंडिया कम्पनी को आज तक झेल रहे हैं! यह हजारों कम्पनियां क्या कर रही हैं और करेंगी, इसका अनुमान लगाइए!! क्या आप को नहीं लगता कि सब कुछ मानव जाति को समाप्त करने के लिए हो रहा है? वह भी सोनिया के नेतृत्व में।

कांग्रेस ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29(1) और 39(ग) का संकलन कर प्रत्येक नागरिक को बलि के बकरे के स्तर पर रख छोड़ा है। जो भी इस भारतीय संविधान की शपथ लेता है, आत्मघाती और मानव जाति का शत्रु है। 

क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष