Thursday, March 15, 2012

आजादी या दासता?



नेहरू खान  वंश भाग-21



अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


प्रतिवाद

जब मानव के विश्वास को ठेस लगती है, तो वह प्रतिवाद पर उतर आता है। समाजवादी, ईसाई व मुसलमान प्रतिवाद से घिर चुके हैँ। बाइबल व कुरआन छल है, यह विश्वास करने को वे तैयार नहीँ। लूट व यौनसुख के लोभ मे नाक कटने से नारायण दीखता हैकी तर्ज पर स्वयम् दासता, पाप व अपराध को मुक्ति का मार्ग मानने वाले निराशा से त्रस्त ये लोग वे सारे स्पष्टीकरण देते हैँ, जिनका कोई औचित्य ही नही। जहां एक ओर वे अल्लाह व ईसा के झूठे चमत्कारों व कुतर्कों का सहारा लेते है , वहीं दूसरे की कमियां निकालने लगते है, ताकि बाइबिल व कुरआन को सही सिद्ध किया जा सके। जब भी उन्हें कुरआन व बाइबल के उन अनैतिक कथनों का सामना करना पड़ता है अथवा मुहम्मद व मूसा के घृणित कार्यों का ज्ञान होता है, प्रतिवाद मेँ वे मरने मारने पर उतारू हो जाते हैँ। अपने विश्वासों व निर्णयों को सर्वश्रेष्ठ मानना मानवीय दुर्बलता है। अतएव समाजवादी, ईसाई व मुसलमान अपने विश्वासों को ही सही मानते हैँ। लूट, हत्या व बलात्कार की इन आस्थाओं को वे त्यागना नहीं चाहते।
पैदा होने के बाद से ही जिनको झूठ व मक्कारी ही सिखाई गई है और जो यही जीवन जीने के आदी बन चुके हैँ, उनके लिए सत्य बड़ा कठोर व कष्टकारी लगता है। एक यहूदी व मुसलमान को मूसा व मुहम्मद के विरुद्ध एक शब्द भी सुनना सहन नही होता। यह सब कुछ उसी प्रकार होता है, जिस प्रकार किसी बच्चे को सारे प्रमाण दिए जाएं कि उसका बाप दुराचारी, चोर व हत्यारा है, तब भी वह मानने के लिए तैयार नहीं हो सकता। वह प्रमाण देने वाले को ही अपना शत्रु व झूठा मानता है और क्रोध वश मरने मारने पर उतारू हो जाता है। आत्मरक्षा का ईसाइयत व इस्लाम का यही ढंग धार्मिक युद्ध है। उनकी यही सोच कि प्रतिवाद मे जिहाद व मिशन द्वारा वे अपने मजहबों का वर्चस्व स्थापित कर लेंगे, मानवता के विनाश का कारण बनेगी।


मूसा के नेतृत्व मेँ यहूदियों की यही भूल यहूदियों के मातृभूमि, नारी व संपत्ति के हरण का आज भी कारण बनी हुई है। सत्य बड़ा कठोर होता है। देर या सबेर उसे मानना ही पड़ता है।
वह सत्य यह है कि स्वर्ण, सुरा, सुंदरी और प्रभुता के लोभ मे ँ अपने द्वारा बनाए गए मूल्यों व सिद्धांतों का ही तथाकथित धूर्त पैगम्बरों, मूसा, ईसा व मुहम्मद ने स्वयं अपमान किया और उनके अनुयायी आज भी करते हैँ। इतर धर्मावलम्बियों की सम्पत्ति, स्त्री और धरती पर बल पूर्वक अधिकार करने के लिए व ऐसे घृणित अपराध से मुक्ति के लिए इन लोगोँ ने धर्म व देवताओं को कवच बनाया। मजहबों के निराकार देवताओं की स्थापना कर डाली। अन्य धर्मावलम्बियों को कत्ल करना, (बाइबल, याशयाह 1316) व (बाइबल, लूका 1927) उनका रक्त पीना और मांस खाना, (बाइबल, यूहन्ना 653) नारियों का बलात्कार, (बाइबल, याशयाह 1316) व (कुरआन 424236) बच्चों और विश्व के लोगोँ को दास बनाना ही इनका धर्म है।

 प्रेस, ईसाइयों व मुसलमानों को मालूम होना चाहिए कि फतिंगों की भांति लूट व वासना के लोभ मेँ वे स्वयं ईसा, मूसा, मुहम्मद अथवा प्रजातंत्र के दास बन रहे हैँ। जेहोवा, गाड और अल्लाह से यहूदी, ईसाई और मुसलमान नहीँ मिल सकते। जब कि मानव मात्र ईश्वर से योग या कुंडलिनी जागरण द्वारा सीधे मिल सकते हैँ। इन्हीं आपराधिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन लोगोँ ने बहुरूपिए देवताओं का आविष्कार किया। इन देवताओं की कुछ विशेषताएं हैँ। सभी देवता अपने धूर्त पैगम्बरों के घरेलू दास हैँ। सभी अपने धूर्त पैगम्बरों के आदेशानुसार अपराधियों के अपराध क्षमा करते हैँ, जिससे अपराधों को प्रोत्साहन मिलता व अपराधियों का मनोबल बढ़ता है। सभी अन्य देवताओं से ईर्ष्या करते हैँ। सभी साम्राज्यविस्तारवादी हैँ और सभी पूरी दुनियां के सम्पत्तियों व नारियों के स्वामी हैँ। लूट, हत्या व बलात्कार को स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग मानना सभी की विशेषता है। मुहम्मद ने पैगम्बरी पर मुहर लगा दी। फिर भी उसका हत्यारा अल्लाह (कुरआन 817) मुसलमानों को धरती की दूसरी सबसे बड़ी आबादी ही बना सका। ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और षड़यंत्र मेँ भी मुसलमान ईसाइयों से बहुत पीछे है। 


यदि मुसलमानों का अल्लाह उनको इजराइल, भारत, पाकिस्तान, बंगलादेष और काषमीर लेने का अधिकार देता है, तो अमेरिका व ब्रिटेन को भी लेने का अधिकार देता है(कुरआन 839) लेकिन 27 देष मिलकर भी एक इजराइल से न निपट पाए तो फिर मुसलमान अमेरिका व ब्रिटेन कैसे लेगें? अतएव मुसलमान निज हित में इस्लाम छोड़ दें। अल्लाह और जेहोवा अपराधी हैं, इनको विश्व का रचयिता व ईश्वर बताने वाले धूर्त हैं। लूट, बलात्कार और सबको अपने अधीन कराने वाला ईश्वर क्या एक नेक व्यक्ति भी नहीँ हो सकता। जो स्वयं पैगम्बरों के दास हैं वे मानव जाति को मुक्ति क्या देंगे?


रेडक्रास नारियों, बच्चों व युद्ध से विरत नागरिकों के अधिकार की वकालत करता है। यहूदी हों या ईसाई अथवा मुसलमान नारियों के गहने लूटते, बलात्कार करते और दास बना कर बेचते रहे हैँ। जहां मानव स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा है, वहीं यहूदी, ईसाई, मुसलमान, साम्यवादी व लोकतंत्रवादी लूट व बलात्कार के लोभ में दासता को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैँ, मानव बम बन रहे हैँ और मरने मारने पर उतारू हैँ।


आजादी या दासता?


जहां विश्व को आजादी के नाम पर ठगा जा रहा है, संयुक्त राष्ट्र संघ व अमेरिकी और भारतीय संविधान भी अपनी उद्देशिका में अपने नागरिकों को आजादी का वचन देते हैं, वहीं बेशर्मी से अपनी आजादी गवांने, मानवमात्र की आजादी छीनने मे बाइबिल, कुरआन, भारतीय संविधान, ईसाई, मुसलमान, प्रजातंत्र के चारो स्तम्भ, साम्यवादी, शासक, प्रशासक, इमाम, मौलवी, पोप, पादरी, पुरोहित, कथा वाचक, जज आदि सभी लगे हैं। लूट, यौन शोषण और सत्ता के लोभ ने इनके आजादी के ललक को भी इनसे छीन लिया है। ए लोग प्रसन्नतापूर्वक लूट, जीविका, व सत्ता के लोभ में अपने दासता का संरक्षण आत्मघात के मूल्य पर सहर्ष कर रहे हैं। इन्हें इस बात के लिए लज्जा नही ँ है कि ए लोग स्वयं ठगे जा रहे हैं। लूट व यौन सुख के लोभ में ये लोग मानवता को डायनासोर की भांति मिटा देने पर आमादा हैं।
मानव अपने अस्तित्व मेँ आने के साथ ही आज तक दासता व शोषण के विरुद्ध लड़ रहा है। आंदोलन व युद्ध भी स्वतंत्रता के लिए हो रहे हैँ। लेकिन मानव जाति की मति मारी गई है। राज्य की स्थापना स्वतंत्रता के लिए व शोषण के विरुद्ध की गई है। राज्यों ने दूसरे का द्दन छीनने वालों को अपराद्दी घोषित कर दिया है और दंड देते हैँ। सभी राज्यों ने लूट, हत्या, अपहरण, बलात्कार और द्दोखाद्दड़ी को अपराध घोषित कर रखा है। सभी ने पुलिस, कानून और न्यायपालिकाओं की व्यवस्था कर रखी है। यहाँ तक कि दूसरे की सम्पत्ति को चुराना (कुरआन 538 बाइबल निर्गमन, दस आज्ञाएं, 1517) या छीनना अपराद्दी देवताओं, जेहोवा, गाड व अल्लाह तक ने भी अपराद्द घोषित कर रखा है। धूर्त पैगम्बरों द्वारा किए गए अपराघ के दंड से मुक्ति ही इन देवताओं के अनुसंद्दान का कारण है। ईसाई बाइबल को धर्म पुस्तक कहते हैँ व मुसलमान कुरआन को। 



क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष