Friday, January 6, 2012

नेहरू खान वंश भाग:16


प्रजातंत्र कितना उपयोगी

अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


प्रजातंत्र बहुमत के सिद्धांत पर कार्य करता है. मनुस्मृति का श्लोक है,
‘‘सर्वो दण्डजितो लोको दुर्लभो हि शुचिर्नरः।
दण्डस्य हि भयात्सर्वे जगद्भोगाय कल्पतेे।।7.22।।
अर्थः केवल दण्ड के भय से मनुष्य न्याय पथ से विचलित नहीं होता. क्यों कि स्वभाव से निर्दोष मनुष्य दुर्लभ हैं. यह चराचर जगत दण्ड भय से ही अपने 2 भोग भोगने में समर्थ होता है. यानी बहुमत दोषियों का है जो दोषी लोगों को ही चुन कर सत्ता में भेजते हैं. जो स्वयं दोषी हैं वे नागरिकों को अच्छा कैसे बनायेंगे अतः प्रजातंत्र एक घृणित ब्यवस्था है जो दोषी लोगों द्वारा शासन करने के लिये दोषी लोगों को चुनती है. इस ब्यवस्था में कोई सुरक्षित नहीं हैं.
यह सरकार गैर मुसलमानों की रक्षा में विफल है। अतः इस सरकार को कर लेने का कोई अद्दिकार नहीं है। यदि इजराइल अपने नागरिकों की रक्षा के लिए विदेशी भूमि पर आतंकवादी ठिकानों पर आक्रमण कर सकता है तो भारत सरकार क्यों नहीं? यही प्रमाण है कि हत्याएं गैरमुसलमानों को मिटाने के लिए संघ सरकार स्वयं करा रही है।
दिल्ली। 19 जुलाई, 2009. नारी ही नारी की सबसे बड़ी शत्रु है। सुश्री मायावती ने बेचारी सुश्री रीता बहुगुणा जोशी को जेल भेजवा दिया। वह भी उस भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए के अधीन, जिस का प्रयोग 1947 से आज तक किसी ईमाम या पादरी, कुरआन अथवा बाइबल के विरुद्ध नहीं किया गया। ज्ञातव्य है कि 153ए के अधीन किए गए अपराध का परीक्षण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अधीन मात्र सोनिया द्वारा मनोनीत राज्यपाल टी0वी0 राजेश्वर के संस्तुति पर ही किया जा सकता है। श्री वरुण गांधी के बाद अब सुश्री रीता बहुगुणा जोशी अपने वक्तव्य के लिए माफी मांग चुकी हैं। सोनिया भी वक्तव्य पर खेद जता चुकी है। आत्मघातियों का यह समूह बाइबल, अजान व कुरआन की नीचे उद्धृत आयतों के विरुद्ध क्यों नहीं बोलता?
‘6. सिवाय इसके कि अपनी पत्नियों से या उन (लौंडियों) से जो उनकी मिल्क में हो, संभोग करते हों कि वे निन्दनीय नहीं है ।’’ कुरआन-236 सूरह अल मोमिनून व सूरत अल-मारिज (7030).
कलिमाः मात्र अल्लाह पूज्य है। मुहम्मद अल्लाह का रसूल है.
अल्लाह ने मुहम्मद के बेटे जैद की पत्नी से मुहम्मद का विवाह कराया!
‘‘37. याद करो (ऐ नबी), जबकि तुम उस व्यक्ति से कह रहे थे जिसपर अल्लाह ने अनुकम्पा की, और तुमने भी जिस पर अनुकम्पा की कि ‘‘अपनी पत्नी को अपने पास रोके रखो और अल्लाह का डर रखो, और तुम अपने जी में उस बात को छिपा रहे हो जिसको अल्लाह प्रकट करनेवाला है। तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज्यादा हक रखता है कि तुम उससे डरो।’’ अतः जब जैद उससे अपनी जरूरत पूरी कर चुका तो हमने उसका तुमसे विवाह कर दिया, ताकि इमानवालों पर अपने मुंह बोले बेटों की पत्नियों के मामले में कोई तंगी न रहे जबकि वे उनसे अपनी जरूरत पूरी कर लें। अल्लाह का फैसला तो पूरा हो कर ही रहता है। (कुरआन सूरा 33, अल-अहजाब आयत 37) (कुरआन 3337-38)
‘‘38. नबी पर उस काम मे कोई तंगी नहीँ जो अल्लाह ने उसके लिए ठहराया हो। यही अल्लाह का दस्तूर उन लोगों के बारे में भी रहा है जो पहले गुजर चुके हैँ-और अल्लाह का काम तो जंचा-तुला होता है।’’ (कुरआन 3338)
यदि कोई सोचता है कि वह अपनी युवा हो चुकी कुआंरी बेटी (प्रिया) के प्रति उचित नहीँ कर रहा है और यदि उसकी कामभावना तीव्र है, तथा दोनो को ही आगे बढ़ कर विवाह कर लेने की आवश्यकता है, तो जैसा वह चाहता है, उसे आगे बढ़ कर वैसा कर लेना चाहिए। वह पाप नहीँ कर रहा है। उन्हें विवाह कर लेना चाहिए। (बाइबल, 1 कुरिन्थियों 736)
‘15. जो भी पकड़ा जाएगा, कत्ल किया जाएगा।
‘16. उनके बच्चों को उनकी आखों के सामने पटक कर मार डाला जाएगा, उनके घर लूट लिए जाएंगे और उनकी नारियाँ उनके आखों के सामने बलात्कारित की जाएंगी। बाइबल-ईसाइआह-1316’
सुश्री मायावती क्या बाइबल व कुरआन के उपरोक्त आयतों के विरुद्ध भी अभियोग चलवा पाएंगी? मेरा विश्वास है कि सुश्री मायावती ईसाई अथवा मुसलमान नहीं हैं। अतएव उन्हें यह निर्णय लेना ही पड़ेगा कि वे अपना बलात्कार किसी मुसलमान से कराएंगी अथवा ईसाई से? सुश्री मायावती को यह स्पष्टीकरण जनहित में देना ही चाहिए।  श्री शतीशचंद्र मिश्र कानून विशेषज्ञ हैं। सुश्री मायावती को उनकी सीमाएं बताएं।
अज्ञान वश  नारी चाहे मुसलमान हो या ईसाई, अपने ही शत्रुओं की जननी है। यदि नारियाँ, जिनको ईश्‍वर  ने स्वतंत्र पैदा किया है, आज ही संकल्प लें कि वे किसी भी ईसाई या मुसलमान से यौन सम्बन्ध नहीं रखेंगी तो इस्लाम व ईसाइयत दोनो ही आतताई संस्कृतियां प्रजनन के अभाव में नष्ट हो जाएंगी। खूंखार आतताई सैतानों अल्लाह व जेहोवा का नामोनिषान मिट जाएगा। संवैधानिक स्थिति यह है कि नारी का बलात्कार हर हाल में भयानक सच्चाई है। यदि नारी मुसलमान है तो उसका ईसाई उसके पुरुषों के सामने बलात्कार करेगा और यदि ईसाई है तो मुसलमान।
सबसे अधिक दुर्दशा तो उन आत्मघाती व महामूर्ख सर्वहारा तानाशाहों यानी सरकारी नौकरों और मीडिया के लोगों के नारियों की है, जो न तो मुसलमान हैं और न ईसाई। वैदिक संस्कृति के समूल नाश, लूट व नारियों के बलात्कार व अपमान की व्यवस्था तो पाकपिता गांधी ने ईसाइयत व इस्लाम को भारत में 1947 में ही रोक कर पूरा किया; जिसे 26 नवम्बर, 1949 को ही अंग्रेजों के कांग्रेस ने भारतीय संविधान का संकलन करके पक्का कर लिया है। गणतंत्र, ईसाइयत व इस्लाम मानवजाति के शत्रु हैं। ईसाइयत व इस्लाम को भारत में रहने देना ही धोखाधड़ी है। वर्चस्व के लिए ईसाइयत व इस्लाम आपस में लड़कर मरेंगे। अपने जान-माल की रक्षा करना भारतीय दंड संहिता की धाराओं 102105 के अधीन हर नागरिक का कानूनी अधिकार है। प्राइवेट प्रतिरक्षा में किया गया कोई कार्य भारतीय दंड संहिता की धारा 96 के अधीन अपराध नहीं है।
जहां आर्यों की वैदिक संस्कृति ने विश्व के सभी संस्कृतियों को शरण दिया, वहीं ईसाइयत व इस्लाम ने जहां भी शरण ली, आक्रमण या घुसपैठ की, उस भूभाग की मूल संस्कृति को नष्ट कर दिया। भले ही संस्कृति को मिटने में सैकड़ों वर्ष लगें, लेकिन ईसाइयत व इस्लाम विफल नही होते। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29(1) का संकलन कर कांग्रेस ने उन्हीं ईसाइयत व इस्लाम को आपकी मातृभूमि सौंप दिया है। अब प्रधानमंत्री मनमोहन ने देश  के संसाधनों पर मुसलमानों को पहला अधिकार दे दिया है। यदि भारतीय संविधान, कुरआन व बाइबल हैं तो वैदिक संस्कृति मिटने से नहीं बच सकती।
वैदिक संस्कृति को मिटाने के लिए ही दंड प्रक्रिया संहिता की धाराएं 196197 बनाई गई हैं। अजान,  बाइबल-कुरआन में लिखे आदेश तो भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153295 के अंतर्गत शांति व्यवस्था को प्रभावित नहीं करते लेकिन इनके उद्धरण अपराध हैं। अपराधी को संरक्षण व विरोधी को दंड राज्यपाल के काम हैं। क्योंकि वैदिक संस्कृति को मिटाना है। इन धाराओं के अधीन मामलों पर पुलिस अधिकार रखते हुए भी किसी अजान देने वाले मुसलमान के विरुद्ध 1947 से आज तक कोई कार्यवाही नहीं कर सकी और न तथाकथित स्वतंत्र न्यायपालिका बिना राज्यपाल के संस्तुति के कोई सुनवाई ही कर सकती है। यानी कि सुश्री मायावती का अपमान राज्यपाल टी0वी0 राजेश्वर के संरक्षण में होता है। सांप्रदायिक सौहार्द की परिभाषा ही बदल दी गई है।
मुसलमानों की गाली, प्रतिक्षण ईश्वर व वैदिक संस्कृति का अपमान और आस्था के आधार पर टी0वी0 राजेश्वर, शतीश मिश्र व मायावती सहित आर्यों को मिटाने की प्रतिज्ञा ही सर्वधर्म समभाव है लेकिन इस अपमान का विरोध करना सांप्रदायिकता है। आर्थिक ठगिनी प्रतिभा, राज्यपालों व जिलाधीशों की नियुक्ति इसलिए की जाती है कि वे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 से प्राप्त विशेषाधिकार के अधीन मुसलमानों व ईसाइयों से आर्यों के आस्था व ईश्वर का अपमान कराएं। सांप्रदायिक विद्वेष फैलवाएं। जो भी ईसाइयत, इस्लाम मुसलमानों के अजान, कुरआन व ईसाइयों के बाइबल के कत्ल, लूट व नारी बलात्कार की शिक्षाओं का विरोध करे उसके विनाश हेतु भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153295 के अधीन अभियोग चलाने की संस्तुति दें। लूट, हत्या व बलात्कार इस्लामी व ईसाइयत संस्कृति है। इन संस्कृतियों को बनाए रखने का भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29(1) हर मुसलमान व ईसाई को असीमित मौलिक अधिकार देता है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अजान व नमाज को पूजा, कुरआन व बाइबल को धर्म पुस्तक स्वीकार किया है। इनके विरुद्ध कोई जज सुनवाई ही नहीं कर सकता। नागरिक शिकायत नहीं कर सकता। (एआईआर, 1985, कलकत्ता उच्च न्यायालय, 104)
मैने बाबरी ढांचा गिरवाया है। मैने इस आशय का लिबड़ां आयोग में 15.1.2001 को शपथपत्र भी दिया है। मैने कुरआन के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका सं0 15/1993 प्रस्तुत की थी। जो निरस्त कर दी गई। मैने पत्रक मुसलमानों भारत छोड़ोऔर ईश्वर अल्लाह कैसे बना?’ प्रकाशित किया और बांटा था। जिनके आधार पर मेरे विरुद्ध थाना रूपनगर से क्रमशः दो अभियोग 78/1993137/19931 चले थे। जिनमें मुझे 3 जुलाई 1997 को दोषमुक्त कर दिया गया। अभी मेरे विरुद्ध बाइबल, कुरआन और भारतीय संविधान का विरोध करने के कारण रूपनगर थाने से अभियोग 440/1996484/1996 चल रहे हैं। इसके अतिरिक्त थाना नरेला से भी अभियोग 10/2001, 406/2003 और 166/2006 चल रहे हैं। मैने कानपुर में पाकपिता गांधी की प्रतिमा को तोड़वा कर हुतात्मा श्री गोडसे की प्रतिमा लगवाई थी। वह अभियोग भी 127/1997 थाना रूपनगर से अभी चल रहा है। प्रजातंत्र लूट, दास व बलात्कार संस्कृति है। वैदिक संस्कृति जिनकी विरोधी है। (मनुस्मृति 8308) व (गीता 721).
यद्यपि जगतगुरु अमृतानंद, जिनके मुंह में जेल में गोमांस ठूसा गया, साध्वी प्रज्ञा, जिनकी रीढ़ की हड्डी ही तोड़ डाली गई है, कर्नल पुरोहित, जिनका पैर तोड़ डाला गया है या किसी अन्य ने मालेगांव बम कांड में कुछ भी नहीं किया है, फिर भी वैदिक संस्कृति को नष्ट करने हेतु हम सभी अभियुक्त हैं। हमारा अपराध यह है कि हम उस संस्कृति को बचाना चाहते हैं, जिसने विश्व की सभी संस्कृतियों को शरण दिया। हम नहीं चाहते कि सोनिया जजों के आखों के सामने जजों के दुधमुहों को पटक कर मरवा डाले। जजों की नारियों का बलात्कार करा पाए। जजों का घर लुटवाए और अंत में जजों को कत्ल कराए। (बाइबल, याशयाह 1316) भयादोहित जज इतने विवश हैं कि यदि वे अपनी ही वैदिक संस्कृति का विनाश नहीं करेंगे, अपने नारियों का बलात्कार नहीं कराएंगे, अपने दुधमुहों को पटक कर नहीं मरवाएंगे, अपने मंदिर नहीं तोड़वाएंगे और अपने संतों व साघ्वियों का उत्पीड़न नहीं कराएंगे, तो स्वयम् दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शमित मुखर्जी की भांति जेल चले जाएंगे। हम वैदिक संस्कृति बचाना चाहते हैं। ठीक इसके विरुद्ध सोनिया को जारज प्रेत ईसा की आज्ञा है कि जो भी ईसा को राजा नहीं मानता, उसे सोनिया कत्ल करा दे। (बाइबल, लूका 1927). मानव जाति का विनाश आसन्न है। सुश्री मायावती मानवजाति को बचाएं।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष

Wednesday, January 4, 2012

कांग्रेस की चलती तो वर्तमान पंजाब और प0 बंगाल पाकिस्‍तान के जबड़ों में होता

वर्तमान पंजाब और प‍0 बंगाल को पाकिस्‍तान के जबड़े में जाने से किसने बचाया,

इसे जानने के लिये अवश्‍य पढ़ें:
अखिल भारत  हिन्‍दू महासभा
49वां अधिवेशन पा‍टलिपुत्र-भाग:2
(दिनांक 24 अप्रैल,1965)
हिंदू महासभा का दृष्टिकोंण सदैव सही रहा
अध्‍यक्ष बैरिस्‍टर श्री नित्‍यनारायण बनर्जी  का अध्‍यक्षीय भाषण
प्रस्‍तुति: बाबा पं0 नंद किशोर मिश्र
यद्यपि हिंदू महासभा ने अतीत से आज तक सदैव ही राष्‍ट्र का सही पथ-प्रदर्शन किया है, किंतु देश का यह दुर्भाग्‍य  रहा कि हिंदू महासभा को कभी बहुमत में जनता का समर्थन प्राप्‍त नही हो सका। गलत नेतृत्‍व का चयन करने के फलस्‍वरूप ही जनता को आज अवर्णनीय कष्‍टों तथा आपदाओं को सहन करने पर विवश होना पड़ रहा है। वर्तमान  इतिहास के कतिपय उदाहरण ही इस सत्‍य की साक्षी प्रमाणित करने के लिये पर्याप्‍त होंगे।
(1)  हिंदू महासभा ने 1935 ई0 के साम्‍प्रदायिक निर्णय (एवार्ड) को (जिसके अनुसार राजकीय सेवाओं एवं विधानमंडलों में मुसलमानों के लिये स्‍थान सुरक्षित करने की व्‍यवस्‍था की गई थी) इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि उससे राष्‍ट्र-विरोधी एवं सांप्रदायिक भावनाओं को बढ़ावा मिलेगा, किंतु कांग्रेस ने इस निर्णय को अप्रत्‍यक्षत: स्‍वीकार कर लिया। वस्‍तुत: इस निर्णय में ही पाकिस्‍तान के बीज निहित थे।
 
(2) इसी आधार पर हिंदू महासभा ने वायसराय की परिषद में हिंदुओं एवं मुसलमानों को 50-50 प्रतिशत स्‍थान दिये जाने का विरोध किया किंतु कांग्रेस ने मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिये इसे भी अस्‍वीकार कर दिया। वस्‍तुत: तुष्टिकरण की यह नीति मुसलमानों को रिझाने में सर्वथा असफल रही।
(3) 1941 में जनगड़ना का बहिष्‍कार  करने के कांग्रेस द्वारा लिये गये निर्णय पर महासभा ने आपत्ति उठायी। इस बहिष्‍कार का ही यह परिणाम हुआ देश में कृतिम  रूप से मुसलमान का प्रतिशत बढ़ाया गया और उसी बढ़े हुये प्रतिशत के आधार पर इन गलत आंकड़ों के फलस्‍वरूप ही पाकिस्‍तान को अधिक भूमिखण्‍ड की प्राप्‍त हुई।
(4) 1945 में हिंदू महासभा ने देश की जनता को सुस्‍पष्‍ट शब्‍दों में यह चेतावनी दी कि ''कांग्रेस को मत देने का अर्थ है पाकिस्‍तान के पक्ष में मतदान।'' किंतु गांधी जी और पंडित जी सरीखे कांग्रेसी नेताओं नें देश की जनता को यह विश्‍वास दिलाया कि कांग्रेस पाकिस्‍तान की स्‍थापना के लिये कदापि सहमत न होगी। किंतु अंतत: कांग्रेस ने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर उपरोक्‍त घोषणा के एक वर्ष उपरांत ही राष्‍ट्र से खुला विश्‍वासघात करने में संकोच न किया। इस भांति महासभा की चेतावनी और भविष्‍यवाणी सत्‍य सिद्ध हुई।
(5) कांग्रेसतो संपूर्ण पंजाब और बंगाल को ही पाकिस्‍तान को सौंपने पर सिद्ध थी किंतु हिन्‍दू महासभा के प्रचण्‍ड विरोध प्रदर्शन और उसे प्राप्‍त हुये जनता के प्रभावी प्रदर्शन का यह परिणाम हुआ कि पाकिस्‍तान का  दुभाग्‍यपूर्ण विभाजन तो संभव हो गया मगर इस भांति वर्तमान पंजाब और पश्चिमी बंगाल को वर्तमान पाकिस्‍तान के जबड़ों में जाने से बचाने में हिंदू महासभा सफल रही।
(6) कांग्रेस ने पंचशील और ''हिंदी चीनी भाई-भाई'' के जयघोषों से आकाश गुंजा दिया था, और नई दिल्‍ली में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के राजकीय स्‍वागत का विरोध करने वाले‍ हिंदू महासभाई नेताओं को सरकार ने बंदी बनाकर राष्‍ट्र के शत्रु की मान-वंदना में पलक-पांवड़े बिछा दिये थे। किंतु इतिहास ने यह सिद्ध कर दिया कि चीन की कुचालों को समझने में हिंदू महासभा ही सफल हुई, जबकि कांग्रेस ने चीन को रिझाने की अपनी मूर्खता और सनक में तिब्‍बत की प्रभुसत्‍ता को उसे सौंप कर भारत की सुरक्षा हेतु भी गंभीर संकट उपस्थित कर दिया।