Friday, March 23, 2012

अकाट्य विनाश!


नेहरू खान  वंश भाग-24








अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी


प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


क्या संसद व मीडिया यह जानते हैं कि आतताई अंग्रेजों की कांग्रेस ने व्‍यवस्था इस प्रकार बना दी है कि नागरिक चाहे एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाएं  या प्रतिभा को अथवा अडवानी या मायावती को। किसी भी नागरिक के पास विकल्प नहीं है। सम्पत्ति समाज व आतताई लोक/लूट तंत्र की ही रहेगी। लूट का माल ईसाई व अल्लाह का ही रहेगा। धरती की नारियाँ, शासन और सम्पत्ति तथाकथित अल्पसंख्यक मुसलमानों व ईसाइयों की ही रहेँगी। भारत दार उल हर्ब और शैतानों का देश ही रहेगा। न मंदिर बचेगा, न वैदिक संस्कृति और न भारत ही! जजों सहित किसी का जीवन सुरक्षित नहीं। या तो उसकी हत्या ईसाई करेगा अथवा मुसलमान। यहाँ तक कि जीवन स्वयं ईसाई व मुसलमान का भी सुरक्षित नहीं। किसी नारी का शील सुरक्षित नहीं। या तो उसका बलात्कार ईसाई करेगा अथवा मुसलमान। क्या मीडिया को भी जानकारी है?



भारतीय संविधान, जो प्रत्येक ईसाई व मुसलमान को अपनी संस्कृति सुरक्षित रखने का अनुच्छेद 29(1) द्वारा असीमित मौलिक अधिकार देता है - जिस पर किसी का जोर नहींके मर्यादा की रक्षा की शपथ लेने वाले कितने राज्यपालों व बनाए रखने वाले कितने जजों को बाइबल व कुरआन के सिद्धांतों का ज्ञान है? अफगानिस्तान व ईरान मे लड़ने वाले कितने रणबाकुरों, राजनीतिज्ञों व संविधान की शपथ लेने वाले अथवा कानून के रखवाले कितने लोगों को बाइबल व कुरआन के सिद्धांतों का ज्ञान है? वह स्कूल बता दीजिए, जहाँ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के अधीन संस्तुति देने वाले किसी राष्ट्रपति, राज्यपाल अथवा जिलाधीश को बाइबल व कुरआन के सिद्धांतों की शिक्षा दी जाती है? 1947 के बंटवारे व जातिसंहार और 712 से आजतक के इस्लामी नरसंहार की शिक्षा कहां  दी जाती है? बाइबल व कुरआन के घातक मानव द्रोही सिद्धातों का किसे ज्ञान है?



मालेगांव मस्जिद विस्फोट मामले की 4500 पन्नों की चार्जषीट मेरे वेबसाइट आर्यावर्त बेबसाइट पर है। जिस मोटरसाइकिल से विस्फोट होना बताया जाता है, उसका इंजिन व चैसिस नम्बर मिटाया हुआ है। देखें सचिव चितकला जुत्षी की स्वीकृति पृष्‍ठ ए-1/88 पर। संदेह का लाभ किसे मिलना चाहिए? प्रकृति न किसी को दंड देती है और न पुरस्कार। जो कुकर्म जज कर रहे हैं और जिन आतताइयों इस्लाम व ईसाइयत की रक्षा के लिए कर रहे हैं, वे ही उनके विनाश के कारक बनेंगे! जजों के दुधमुहों को सोनिया पटक कर मरवा डालेगी। जजों के घर लूट लिए जाएंगे। जजों की नारियां जजों के आखों के सामने बलात्कारित की जाएंगी। (बाइबल, याशयाह 1316) और अंत में जजों को सोनिया कत्ल करवा देगी। वह भी जजों के स्वयम् के निर्णय से। (एआईआर, 1985, कलकत्ता उच्च न्यायालय, 104).
यदि अल्लाह सर्वसमर्थ विश्व का रचयिता है, तो उसने काफिर क्यों पैदा किए? पहले काफिरों को पैदा करना और फिर स्वयम् अपने ही पैदा किए काफिरों के हत्यारे मुसलमान पैदा करना अल्लाह को अपराधी कसाई सिद्ध करता है और अल्लाह के सर्वसमर्थ होने का प्रमाण नहीं हो सकता विशेषतः तब, जब अल्लाह यह स्पष्ट कर देता हो कि तुमने यानी मुसलमानों ने कत्ल नहीं किया, बल्कि अल्लाह ने कत्ल किया... (कुरआन 817). 



प्रजातंत्र के उपरोक्त खलनायकी व्यवहार ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्रजातंत्र एक अत्यंत आत्मघाती व्यवस्था है। मानव जाति की रक्षा के लिए प्रजातंत्र का समूल नाश आवश्यक है। भगवान परशुराम ने आर्यावर्त सरकार व वैदिक संस्कृति की स्थापना की है। अमृतानंद ने आर्यावर्त सरकार के महाराज का चयन कर लिया है। कृपया महाराज के राज्याभिषेक में साथ दें। हमने आर्यावर्त सरकार का गठन किया है। जिसे ससम्मान जीवित रहना हो, हमसे मिलें-अन्यथा मरने के लिए तैयार रहें। 



मात्र एक करोड़ से भी कम यहूदियों का अपना देश इजराइल है और लगभग एक अरब हिंदुओं का कोई देश नहीं। जब कि हमारे ही भारत के दो खंडों पर दो इस्लामी राज्य हैं। विश्व की सभी संस्कृतियों को वैदिक संस्कृति ने शरण दिया है। वे ही संस्कृतियों जीवित हैं, जिन्होंने वैदिक संस्कृति का सहारा लिया। शेष नष्ट हो गईं। माववता की रक्षा के लिए इस वैदिक संस्कृति को मिटाने से बचें।



भारतीय संविधान के अधीन सृजित प्रेसीडेंट व राज्यपालों के अधीन कार्यरत भ्रष्टाचारी और आतंकवादी जज सहित जनसेवकों की एक फौज है। नागरिकों को लूटने, अपने अधीन रखने और ईसाइयत व इस्लाम की रक्षा करने, ताकि मानव जाति ही डायनासोर की भांति समाप्त हो जाए, के लिए ईमामों, मिशनरियों व जनसेवकों को दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 196197 व व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अधीन प्रेसीडेंट व राज्यपाल संरक्षण देते हैं। यह संरक्षण तब तक जारी रहता है, जब तक मंदिर टूटते हैं, सैनिक मारे जाते हैं, तथाकथित हिंदू कत्ल होते और अपनी मातृभूमि से उजाड़े जाते हैं, ईमाम अजान देते हैं और तथाकथित जनसेवक नागरिकों को लूट कर सोनिया व मनमोहन तक हिस्सा पहुंचाते हैं। जब हिस्सा नहीं पहुंचता तब जनसेवकों द्वारा कृत कार्य भ्रष्टाचार बन जाता है। जिस हुतात्मा रामप्रसाद बिस्मिल के बलिदान के कारण यह लोग सत्ता में हैं, 0प्र0 के राज्यपाल ने उसी की जमीन हड़प लिया।



यहूदीवाद, ईसाइयत व इस्लाम सभी सभ्यताओं से अपने अधीनता की स्वीकृति को अपरिहार्य मानते हैं। (अजान, कुरआन 2191-194839) व (बाइबल, लूका 1927). पंथनिरपेक्षता इनके पवित्र धर्मान्धताओं के दोगले चरित्र के आगे बौनी है। विद्वतजन व मीडिया इसे बल पूर्वक छिपाते हैं।



ईसाइयत व इस्लाम के दोहरे चरित्र भयानक रूप से छली हैँ और इतर धर्मावलम्बियों को केवल दो विकल्प दासता या मृत्यु देते हैँ। इतर धर्मावलम्बियों के साथ यह लोग उतना ही अच्छा व्यवहार कर सकते हैँ, जितना अच्छा व्यवहार एक किसान अपने पशुओं के साथ करता है, लेकिन इतर धर्मावलम्बी उनके भाई या मित्र कभी नहीँ हो सकते। एक मुसलमान या ईसाई किसी भी इतर धर्मावलम्बी का उसी हद तक सहयोग पा सकता है, जितना कि वह अपने मजहब से दूर है।
अतः जो भारतीय संविधान मानवमात्र की हत्या और लूट व नारियों के बलात्कार के लिए बना है, उसे समाप्त करने में आप आर्यावर्त को सहयोग दें। एकपक्षीय धर्मान्तरण धोखा है, जिसमें धर्मान्तरित व्यक्ति विवेकहीन, (बाइबल, उत्पत्ति 217) चरित्रहीन, (बाइबल, याशयाह 1316) हिंसक (कुरआन 839) व दुराचारी (कुरआन 424236) हो जाता है। राज्य का कर्त्तव्य है ऐसे व्यक्ति को दंडित करना। लेकिन इनसे समझौता किया जा रहा है। क्यों कि इन लोगोँ ने स्वस्फूर्त दासता स्वीकार की है। स्वयं आप अकेले लड़ाई नहीं लड़ सकते। राज्य ही राज्य से लड़ सकता है।



यदि ईसाई व मुसलमान ईसाइयत व इस्लाम को त्याग दें तो उन्हें पता चल जाएगा कि उन्होंने भले व बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया है (बाइबल, उत्पत्ति 217) और उनके लिए मूर्खों के स्वर्ग का दरवाजा सदा सदा के लिए बंद हो चुका है। तभी उन्हें पता चल सकेगा कि उनको व उनके पूर्वजों को पुरोहितों व शासकों ने कितने बेरहमी से ठगा है। यदि स्वयम् व मानव जाति को बचाना है तो वैदिक पंथी बनिए।



क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष

Tuesday, March 20, 2012

Jawaharlal Nehru Exposed - II

Jawaharlal Nehru Exposed - I

सोनिया गांधी के नेतृत्‍व में हिन्‍दुओं को हर तरफ से समाप्‍त किया जा रहा है



समलैंगिक दुराचार को कानूनी मान्यता

नेहरू खान  वंश भाग-23

अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी


प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

भारत में समलैंगिक दुराचार की नींव उसी दिन पड़ गई, जिस दिन सोनिया द्वारा मनोनीत आर्थिक ठगिनी प्रतिभा भारत की राष्ट्रपति बनी यानी भारत मां की नारी पति बन गई। 

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुसलमान ई00 712 से ही मंदिर तोड़ते, नारियों का बलात्कार करते और लूटते रहे लेकिन फिर भी भारत 1835 तक सोने की चिड़िया व चरित्रवान रहा। तब एक भी गरीब नहीं था। आज गरीबी मिटाई जा रही है। वह भी कार्पोरेट टैक्स ले कर! तब एक भी चोर नहीं था, आज स्वयं जज चोर हैं। मैकाले की ईसाइयत ने ही हमारा चारित्रिक पतन किया। फिर भी अभी हमारा पूर्णरूपेण पतन नहीं हो पाया है। आज भी हमारे यहां साले, बहनोई, फूफे, बुआएँ, मामा, मामी, मौसी, मौसे आदि पाए जाते हैं।
हमारे देश में धर्मान्तरित ईसाइयों के यहां भी कुमारी माताएँ नहीं पाई जातीं। छात्राओं को गर्भ निरोधक गोलियां खिलाने की सरकारी प्रथा हमारे यहां नहीं है। भारत में ईसाई परिवार की कन्याएँ भी आज भी 13 वर्ष से कम आयु में बिना विवाह गर्भवती नहीं होतीं। भारत की सरकारों ने आज तक पुरुष समलैंगिक व नारी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी थी। ऐसे में ईसाइयत संस्कृति की महानता सिद्ध नहीं हो पाती है। एंटोनिया मैकाले के मिशन को पूरा करने के लिए भारत में सत्ता के शिखर पर बैठी है। अतएव सोनिया के कठपुतली दिल्ली उच्च न्यायालय के जजों ने सहमति से समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। जो कुकर्म पशु भी नहीं करते- अब सोनिया करा रही है। वह भी कठपुतली जजों के पीठ से!
भारतीय संविद्दान के अनुच्छेद 31 प्रदत्त सम्पत्ति के जिस मौलिक अधिकार को अंग्रेज व संविधान सभा के लोग न लूट पाए, उस अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय ने शंकरी प्रसाद सिंहदेव के मामले में, 1951 में ही संसद द्वारा छीना जाना, अपने जहरीले दांत दिखाते हुए, न्याय बताया। (एआईआर 1951 एससी 458. 1952 एससीआर 89). कोई जज कुरआन व बाइबल के आदेशों के विरुद्ध कोई सुनवाई नहीँ कर सकता (एआईआर, 1985, कलकत्ता 104).
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई की तारीख तब लगती है जब रजिस्ट्रार लिस्टिंग 500 रूपए रिश्वत ले लेता है। निचली अदालतों में चपरासी पुकार के लिए 10 रूपए रिश्वत लेता है। वस्तुतः जनसेवकों की नियुक्ति ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39, जिसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाता, के अधीन नागरिकों की सम्पत्ति व पूंजी लूटने के लिए की जाती है। अघोषित शर्त यह है कि जनसेवक इस लूट का हिस्सा सोनिया द्वारा मनोनीत और महाभ्रष्ट भूमाफिया राज्यपाल को देगा।

 इस लूट के बंदरबांट के नियंत्रण के लिए राज्यपाल के पास कुछ विशेषाधिकार हैं। उनमें से दंड प्रक्रिया संहिता की धाराएँ 196197 और व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 80 उल्लेखनीय हैं। इन्हीं धाराओं के अधीन राज्यपाल जनसेवकों का भयादोहन करता है। जनसेवक नागरिकों को लूटने, कत्ल करने और नारियों का बलात्कार करने के लिए विवश है। जो जनसेवक नागरिकों को नहीं लूटता उसकी सम्पत्ति उसके ज्ञात आय स्रोतों से अधिक हो जाती है और राज्यपाल उपरोक्त धाराओं के अधीन जनसेवक पर अभियोग चलाने की तुरंत संस्तुति देता है। अतएव जनसेवक तभी तक सेवा कर सकता है जब तक वह आत्मघात व मानव घात करता रहे। भला इन जजों से अधिक आत्मघाती व भ्रष्ट कौन हो सकता है?
इसके साथ ही सबकी जमीनें, सोना, बैंक में जमा धन, खाने, कारखाने सभी डाकू प्रजातंत्र ने लूट लिए। आतताई प्रजातंत्र ने जजों से मिल कर सारे समाज को भ्रष्ट लुटेरा बना डाला। चरित्रहीन समाज को अपराधी प्रजातंत्र के अपराध दिखाई ही नहीँ देते। सरकारें नागरिकों के जान माल के रक्षा के लिए बनती हैं। लुटेरों व हत्यारों को सत्ता में रहने का क्या अधिकार?

अब एक कमी है। सर्वोच्च न्यायालय लगे हाथ भारत में कुमारी माताओं को पुरष्कार देने की घोषणा कर दे। जो नारियां विवाह करें उनको मृत्यु दंड देने का कानून पास कर दे।
मुसलमानों के अल्पसंख्यक घोषित होते ही देश के बंटवारे और 35 लाख से अधिक लोगों के नरसंहार व मातृभूमि के निष्कासन के मुसलमानों के पाप व अपराध धुल गए। अब उनको पुनः आरक्षण दिया जा रहा है और देश के संसाधनों पर अधिकार भी। देने वाला वह मनमोहन है जो इस्लाम से सर्वाधिक पीड़ित हुआ। नागरिक विचार करें क्या इस्लाम व ईसाइयत के अस्तित्व में रहते मानव जाति बचेगी?

1947 में सत्ता हस्तांतरण के समय देश के खजाने में 155 करोड़ रूपए थे। देश पर कोई विदेशी ऋण नहीं था। आज देश पर 6 लाख करोड़ रू0 से अधिक ऋण है और यह ऋण तब है जब प्रजातंत्र ने 98 प्रतिशत आयकर, 345 प्रतिशत सीमाकर और बिक्रीकर लगाए। मंदिर लूटे। नागरिकों का सोना लूटा। बैंक लूटा। जमींदारी, जमीनें, कारखाने, खानें, डाकतार, संचार और रेल सेवाएं लूटीं। कहां गई देश की सम्पत्ति? क्या प्रजातंत्र देश को दिवालिया बनाने के लिए उत्तरदायी नहीं है? क्यों रहे ऐसा प्रजातंत्र?
राष्ट्रीयकरण विफल हो गया। लेकिन जिनसे लूटा गया उनको उनकी सम्पत्ति वापस नहीं की गई। अब लूटी गई सम्पत्तियां विदेशी कम्पनियों को कौड़ियों के भाव बेंची जा रही हैं। हम एक ईस्ट इंडिया कम्पनी को आज तक झेल रहे हैं! यह हजारों कम्पनियां क्या कर रही हैं और करेंगी, इसका अनुमान लगाइए!! क्या आप को नहीं लगता कि सब कुछ मानव जाति को समाप्त करने के लिए हो रहा है? वह भी सोनिया के नेतृत्व में।

कांग्रेस ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29(1) और 39(ग) का संकलन कर प्रत्येक नागरिक को बलि के बकरे के स्तर पर रख छोड़ा है। जो भी इस भारतीय संविधान की शपथ लेता है, आत्मघाती और मानव जाति का शत्रु है। 

क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष

Saturday, March 17, 2012

नेहरू खान वंश भाग-22


अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी


प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय



मुसलमान व ईसाई विचार करें


मै घोर सांप्रदायिक वैदिक संस्कृति का अनुयायी हूँ। मुसलमानों व ईसाइयों के अनुसार मेरे पूर्वजों ने अनुसूचित जातियों का शोषण किया और यातनाएँ दीं। मैने अपनी पुस्तक अजानमें मैकाले द्वारा स्वीकार किए गए तथ्यों को उद्धृत किया है। जिसमें स्वयम् मैकाले के अनुसार सन 1835 के पूर्व भारत में कोई अनुसूचित, भिखारी या चोर था ही नहीं! अनुसूचित जाति के मेरे एक मित्र प्रदीप गौतम हैं। गौतम उनका गोत्र है। मेरे ननिहाल के लोग भी गौतम मिश्र हैं। यानी एक शोषक वर्ग का ब्राह्मण और दूसरा शोषित वर्ग का हरिजन। यह समझ से परे है कि हमारे बीच रहने वाले अनुसूचित जाति के शोषित लोग तो अपना मूल गोत्र व संस्कृति बचाए हुए हैं लेकिन आज से 2009 वर्ष पूर्व ईसाइयत नहीं थी और न 1430 वर्ष पूर्व इस्लाम था। किसी भी मुसलमान व ईसाई को यह भी नहीं मालूम कि उनके पूर्वज कौन थे? उनका मूल धर्म क्या था? जिस प्रकार आज वे आतंक, लूट व वासना के लोभ में शासकों व पुरोहितों के दास बने हुए हैं, उसी प्रकार उनके पूर्वजों को भी अपना मूल धर्म छोड़ना पड़ा था। क्या मुसलमान व ईसाई इस्लाम व ईसाइयत से अपने पूर्वजों का बदला लेना नहीं चाहेंगे, ताकि मानव जाति को बचाया जा सके?

चरित्र की नई परिभाषाएं

ईसाइयत, इस्लाम, समाजवाद और प्रजातंत्र अपने अनुयायियों में अपराध बोध को मिटा देते हैं। ज्यों ही कोई व्यक्ति इन मजहबों या कार्लमार्क्स के समाजवाद अथवा प्रजातंत्र में परिवर्तित हो जाता है, उसके लिए लूट, हत्या, बलात्कार, दूसरों को दास बनाना, गाय खाना, आदमी खाना आदि अपराध नहीँ रह जाता, अपितु वह जीविका, मुक्ति, स्वर्ग व गाजी की उपाधि का सरल उपाय बन जाता है। जले पर नमक छिड़कने के लिए इन्हीं पुस्तकों को ईसाई व मुसलमान धर्म पुस्तक कहते हैं। यदि ये धर्म पुस्तकें हैं तो फिर अधर्म व अपराध क्या है? यदि सम्पत्ति समाज की है तो समाज लुटेरा क्यों नहीं


ऐसे समाज के पास सदाचार कहां है? जिस समाज के पास सदाचार नहीँ है वह भ्रष्टाचार कैसे मिटाएगा? अल्लाह व जेहोवा महान इसलिए हैं कि उन्होंने लूट, हत्या, बलात्कार, दूसरे की मातृभूमि पर बलपूर्वक अधिकार और धर्मान्तरण और राष्ट्रन्तरण के बदले अपने अनुयायियों को जीविका, जन्नत और गाजी की उपाधि दे दिया है।
ऐसे प्रजातंत्र को ले कर हम क्या करेंगे जो इस देश मेँ एक भी ऐसा व्यक्ति न पैदा कर सका, जो इस देश का प्रधानमंत्री, सुपर प्रधानमंत्री या प्रेसीडेंट बन सके। हमेँ अपने लुटेरे, हत्यारे व बलात्कारी शासक आयात करने पड़ रहे हैँ!
कुछ इस्लाम व ईसाइयत परस्त बहुरूपिए हिंदू और सिक्ख के भेष में भारत में घुस आए हैं। वे अत्यंत उच्च पदों पर विराजमान हैं और गैर मुसलमान समाज व भारत को समूल नष्ट करने के लिए एड़ी से चोटी तक प्रयत्न कर रहे हैं। उनमें कुलदीप नैयर, खुशवंत सिंह, इंद्र कुमार गुजराल और लाल कृष्ण अडवाणी के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें एक समानता है। जब इन बहुरूपियों पर अल्लाह और इस्लाम का हमला हुआ, इनको भारत ही शरण के लिए दिखाई दिया। यह लोग इस्लाम और अल्लाह के गुणगान करते नहीँ अघाते। यह समझ से परे है कि यदि इस्लाम इतना ही अच्छा है तेा यह लोग पाकिस्तान या दूसरे इस्लामी देशों में क्यों नहीँ चले जाते? पाकिस्तान से भाग कर यह लोग भारत आए हैं। यहाँ से भाग कर कहां जाएंगे?


मात्र यही लोग नहीं, आशाराम बापू, मुरारी बापू जैसे धर्मोपदेशक हिंदू मुस्लिम एकता की बात करते हैं। सर्वधर्म समभाव के सम्मेलन व यज्ञ करते हैं। इन्हें यह बात समझ नही ँ आती कि यदि आर्य जाति मिट गई तो इनके प्रवचन सुनने वाला कौन होगा? कौन कहने वाला मिलेगा, ‘सब धर्म समान हैं’; ‘हिंदू मुस्लिम भाई भाई हैं’; ‘भारत पंथनिरपेक्ष देश है’; ‘मजदूर का कोई मजहब नहीँ होता’ ‘हमें रोटी चाहिए मंदिर नहींऐसे बकवास पाकिस्तान और बंगलादेश में कोई नहीँ करता। इनके जैसे ही कतिपय गुरुओं और उपदेशकों, जिनमें ठाकुर बालक ब्रह्मचारी, का नाम उल्लेखनीय है, पर जब इस्लामी आक्रमण हुआ तो यह बाल बाल बचे और भाग कर भारत आ गए। इन्होंने अपने शिष्यों को बचाना तो दूर, यह उनकी सहायता भी न कर सके। अपमानित हो कर भी वे अपनी आदत से बाज न आए।
भारत आते ही उन्होंने ग्रामोफोन का रिकार्ड बनवा डाला जिसकी शुरुआत ही अल्लाहु अक्बरसे होती है। यह लोग गैर मुसलमानों को बताते हैं कि अल्लाह और ईश्वर एक हैं। राम ही रहीम हैं और कृष्ण ही करीम। अल्लाह और ईश्वर, राम और रहीम, कृष्ण और करीम का सहअस्तित्व पाकिस्तान, कश्मीर और बंगलादेश में सम्भव न हुआ। अल्लाह के ईश्वरीय आदेश से (कुरआन 839) अल्लाह के अनुयायियों ने जिन्हें उनकी अपनी मातृभूमि से ठोकरें मार कर भगा दिया, उनकी आखों के सामने उनकी बहन बेटियों का बलात्कार किया, (कुरआन 424236) उनके दुधमुहें बच्चों को कत्ल किया और उनकी पुस्त दर पुस्त संचित संपत्ति को लूट लिया (कुरआन 8141) वे ही लोग इन आतताइयों के गुणगान करते हैं। सम्पादक जी! आप ही बताएं इनसे बढ़कर आत्मघाती, राष्ट्रघाती और नीच व्यक्ति कौन हो सकते हैं?
गैर मुसलमान समाज को इन शत्रुओं को अच्छी तरह परखना चाहिए। इनकी गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए। यह लोग इस्लाम परस्त हैं, जिसे मिटाया न गया तो गैर मुसलमान जातियों का अस्तित्व मिट जाएगा। मात्र आर्य ही नहीँ स्वयं यह लोग यानी ईसाई व मुसलमान भी जीवित न बचेंगे। क्यों कि अभी यह निर्णय नहीँ हो सका है कि अल्लाह बड़ा है या जेहोवा? अभी यह लोग आर्य जाति और वैदिक संस्कृति को मिटाने के लिए एकजुट हुए हैं। 


लेकिन मैं, आप, गैरमुसलमान व श्री कुलदीप मात्र अल्लाह की पूजा नही करते। अतः आप को ही नहीँ ईसाइयों व गैरमुसलमानों को भी कत्ल होना है। फिर भी धार्मिक कट्टर हिंदू हैं-मुसलमान व ईसाई नहीं! आप की आत्मघात व राष्ट्रघात की नीति अत्यंत सराहनीय है। बधाई! क्यों कि आप मुसलमानों की नमाज को पूजा मानते हैं और मस्जिदों को जहां यही हत्यारा, लुटेरा और बलात्कारी अल्लाह महान कहा जाता है, पूजास्थल मानते हैं। सुनें! आप की सबेरे की नींद हराम करने वाली लाउडस्पीकर की आवाज, ‘‘अल्लाहु अक्बर’’ यानी अल्लाह सबसे महान है। अजान व नमाज का अंश भी जान लें, ‘मात्र अल्लाह की पूजा हो सकती है...इस नमाज को आप लोग सांप्रदायिक पूजा नहीँ मानते। अलबत्ता जो इसके विरुद्ध कुछ लिखे उसे आप भादंसं की धारा 153, 295 या 506 का अभियुक्त बनवा देते हैं। क्यों कि इसी इस्लाम को आप भारतीय गंगा जमुनी संस्कृति का अभिन्न अंग मानते है। इसी संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रत्येक मुसलमान को भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29(1) असीमित मौलिक अधिकार देता है। जिस पर किसी का जोर नहीं! आप व श्री कुलदीप का धार्मिक कट्टरता से संघर्ष का संकल्प व प्रयोग अनूठा है।
आप अपराधी हैं ईसाइयों के यदि आप गैरईसाई हैं और मुसलमानों के भी यदि आप गैरमुसलमान हैं। या तो आप मात्र अल्लाह की पूजा नही ँ करते हैं (कुरआन 2198 व नमाज) अथवा ईसा को अपना राजा स्वीकार नही ँ करते हैं। (बाइबल, लूकाः1927). आज तक यह निर्णय नहीँ हो पाया कि इन अपराधी देवताओं में कौन असली है जब कि सब अपने देवताओं को सर्वोच्च बताते हैं। अतः यदि वैदिक संस्कृति न बची तो ये स्वयं आपस में लड़ कर डाइनासोर की भांति मिट जाएंगे।
श्री कुलदीप नैयर शरणार्थी हैं। मेरे पत्रों के प्रतिवाद में कुछ भी लिखना आप लोग उचित नही ँ समझते। ऐसे पत्रों को आप गृहमंत्री और मुसलमानों के स्वसुर अडवाणी के पुलिस के पास भेजते रहे हैं। श्री कुलदीप नैयर ने लिखा है कि किसी भी बातचीत में विश्वास ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है। लेकिन हमारे विश्वास को लोकतंत्र सदा से ठगता आया है। श्री कुलदीप नैयर का मूल निवास पाकिस्तान है। लेकिन यह व्यक्ति आज तक पाकिस्तान के गठन को विवादित नहीँ मानता। इस व्यक्ति को अपने मातृभूमि से तनिक भी लगाव नहीं। जो व्यक्ति अपने मातृभूमि का ही नहीँवह हमारा क्या होगा? इसके विपरीत जो भी व्यक्ति पाकिस्तान को विवादित मानता है। उसे आप जेल भिजवाते हैं।
क्यों कि आप डाकुओं के अभयारण्य संसद में बैठते हैं। आप व यह व्यक्ति अजान और नमाज को अपराध नहीँ मानते। पाकिस्तान गांधी की लाश पर बन रहा था। आज वही व्यक्ति जिसने पाकिस्तान बनवाया और उसे 55 करोड़ रूपए इनाम दिलवाया, आप का राष्ट्रपिता है! यह समझ में नहीँ आता कि आप लोगोँ को हमारी वल्दियत तय करने व हमारी माताओं को ब्यभिचारिणी घोषित करने का अधिकार कहां से मिल गया?

 सोनिया सत्ता में क्यों?  काबा मूर्तिपूजकों की है। कुरआन लूट संहिता है। अजान गैर मुसलमान के आस्था का अपमान है। 

क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष