Monday, December 12, 2011

नेहरू खान वंश भाग-3


लाल व लाल की कहानी

अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय
यह भारत के दो लालों की कहानी है। यह आप को नई लग सकती है, ऐसा इसलिए कि सभी भारत सरकारों ने पुरजोर कोशिश  करके जनता से इस कहानी को छुपाए रखा है। लेखक ने विभिन्न माध्यमों से तथ्यों केा पता लगाया है। उसके पश्चात तथ्यों को प्रस्तुत कहानी के रूप में पिरोया है। फिर भी लेखक का विश्वास है कि इसमें असाधारण कुछ नहीं। यदि हो भी तो उसके लिए भारत सरकार गलत है, जिसने सच्चाई को सार्वजनिक नहीं किया, लेखक नहीं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आज 62 वर्षों के बाद भी भारत की जनता यह नहीं जानती कि राजीव के नाना कौन थे?
मोतीलाल-वैश्यालय मालिकः
मोती और लाल शब्‍दों का मतलब है। मोतीलाल का नाम नरायनदास या मदन मोहन अथवा उस प्रकार का कोई और नहीं था। मोतीलाल में पंथनिरपेक्षता का बीज पहले ही बोया गया था, जो कश्मीर की इस्लामिक उपज थी और ( वास्तव में जब भी उपयुक्त लगा) उसने मिथ्या अपने ब्राह्मण होने का दंभ किया।
मोतीलाल अधिक पढ़ा लिखा नहीं था। कम उम्र में विवाह कर वह जीविका के लिए इलाहाबाद ( अल्लाह के शहर) आ गया। हमें यह पता नहीं कि निश्चित रूप से वह उस समय इलाहाबाद में कहां बसा। फिर भी हम विश्वास नहीं करते कि उसके बसने की जगह वह मीरगंज रही होगी, जहां तुर्क और मुगल अपहृत हिंदू महिलाओं को अपने मनोरंजन के लिए रखते थे। ( यहीं उर्दू की उत्पत्ति हुई)। हम ऐसा कह रहे हैं क्यों कि अब हम अच्छी तरह जानते हैं कि मोतीलाल अपने दूसरे पत्नी के साथ मीरगंज के रंडियों के इलाके में रहा। ( हम यह नहीं जानते कि मोतीलाल दूसरी पत्नी को सचमुच ब्याह के लाया था अथवा दुराचार के लिए भगा कर लाया था।)
पहली पत्नी पुत्र पैदा होने के समय मर गई। पुत्र भी मर गया। उसके तुरंत बाद मोतीलाल कश्मीर लौट गया, वहां उसे गरीब परिवार की अत्यंत सुंदर उसकी तथाकथित पत्नी मिली जिसे वह इलाहाबाद ले आया। वह मीर गंज में बस गया। मोतीलाल ने सहायक जीविका के रूप में वैश्यालय चलाने का निश्चय किया। क्यों कि उसके पास जीविका का अन्य साधन नहीं था। जो भी हो किसी का अपनी (दूसरी नई पत्नी के साथ भी) वैश्याओं के मुहल्ले में रहना और अपने बच्चों को वहीं पालना सुने? तो उसका मतलब क्या लगाएगा? हम शीघ्र ही  देखेंगे कि जवाहर, मोतीलाल का दूसरा लड़का(?), जो जीवित बचा, बहुत दिनों तक उस मीरगंज में पाला नहीं गया। लेकिन उसकी दोनों बहनों का विकास व पालन पोषण उसी मीरगंज में वर्षों तक होता रहा।
दिन के समय मोतीलाल इलाहाबाद कचहरी में मुख्तार’, जो वकील से छोटा पद होता था, का कार्य करता था। उन दिनों मुख्तार को भी उच्च न्यायालय में वकालत की अनुमति थी। फिर भी, इससे मोतीलाल की आय बहुत अल्प थी।
उसी उच्च न्यायालय में, एक प्रसिद्ध कानूनी सलाह देने वाला अन्य वकील भी था। वह शिया मुसलमान मुबारक अली था। उसकी वकालत खूब चलती थी। इशरत मंजिल नाम का उसका बड़ा मकान था। यह भी बताना आवश्यक है कि उस समय इलाहाबाद में दो  इशरत मंजिल थे। दूसरे इशरत  मंजिल का मालिक अकबर इलाहाबादी था। इससे डाक इधर-उधर  हो जाती थी। मुबारक अली का इशरत  मंजिल बाद में मोतीलाल को बेच दिया गया; जिसका नाम बदल कर आनन्द भवनहो गया। अब इसे स्वराज्य भवनकहा जाता है और राष्‍ट्र  की धरोहर है।
मेातीलाल मुबारक से मिलाः
शाम को, मोतीलाल अपनी वकालत के बाद घर लौटता था। अधिकतर, वह मीरगंज के वैश्याओं के इलाके के अपने निवास में पैदल आता था। मुबारक अली, अन्य धनी मुसलमानों की भांति, मौज मस्ती के लिए मीरगंज आता रहता था। मुबारक अपनी बग्गी में आया करता था। मोतीलाल सदा मुबारक से संबंध  बनाना चाहता था और एक शाम ऐसा हुआ कि मुबारक ने, जब वह न्यायालय परिसर में अपने बग्गी में सवार हो रहा था, इस फटी पैंट पहने हिंदू को देखा। विनम्रता से  मोबारक ने उसे अपनी बग्गी में बैठने के लिए पूछा। दोनों ही, वास्तव में, विभिन्न कारणों से मीरगंज जा रहे थे, अतः मोतीलाल बग्गी में सामने बैठ गया। इच्छुक मोतीलाल को स्पष्ट हो गया कि मोबारक अली किसी खूबसूरत वैश्या के साथ रात बिताना चाहता था। मोतीलाल ने अपनी नई नवेली सुंदर पत्नी के साथ मुबारक को रात बिताने का निमंत्रण दिया। सौदा पट गया। और इस प्रकार मुबारक और मोतीलाल इसके पश्चात् बहुधा  साथ-साथ मीरगंज आते थे।
मुबारक ने मोतीलाल को अपने कानूनी कार्यालय में छोटी नौकरी करने का निमंत्रण दिया। कश्मीरी पंडित ने कामुक मुसलमान के यहां, जो अब उसका मालिक था, नौकरी कर ली। काफी समय बाद मोतीलाल ने अपना कार्यालय ले लिया।
अनुवादक की टिप्पणीः और यहीं से पंथनिरपेक्षता की नींव पड़ी।
इटावा और अमेठी की विधवाः
इसके बाद के कुछ वर्षों में काफी कुछ घटा। इटावा का राजा निःसंतान मर गया। ब्रिटिश कानून के अनुसार निःसंतान विधवा की सम्पत्ति ब्रिटिश  सरकार की हो जाती थी। अतः विधवा को अपनी संपत्ति गवांनी पड़ती। विधवा मुबारक अली से अपने मुकदमे की पैरवी कराने के लिए आई।
मुबारक ने यह कार्य मोतीलाल को सौंपा। उसने पीछे से कार्य किया। मुबारक के आदेश  पर मोतीलाल रानी (स्वर्गीय राजा इटावा की विधवा) से मिला और बताया कि मुबारक आप के केस लड़कर जीत सकते हैं। उसने मुबारक की फीस बताई। यह पांच लाख रूपए थी (उस समय के लिए एक बड़ी रकम)। असहाय रानी ने देना स्वीकार किया। रकम मुबारक अली और मोतीलाल में बराबर बंट गई। लेकिन निचली अदालत में मुबारक अली और मोतीलाल रानी का मुकदमा हार गए। अविचलित, दोनों ने ऊपरी अदालत में रानी के मुकदमे को लड़ने की घोषणा की। फीस फिर 5 लाख रूपए तय हुई जिसे दोनों ने बराबर बराबर बांट लिया। वे उच्च न्यायालय में भी मुकदमा हार गए।
चतुर मुबारक ने मुकदमे को प्रीवी कौंसिल लंदन लड़ने की सलाह दी। इस बार रानी को लंदन आने जाने का ब्यय और बैरिस्टर की फीस भी देनी पड़ी। मुबारक ने उच्च कोटि का बैरिस्टर नियुक्त किया। बैरिस्टर ने अपने बहस मे बताया कि राजा के मृत्यु के पूर्व रानी गर्भवती थी। इस कार्य के लिए एक उचित लड़का ढूंढ़ लिया गया और अदालत को बताया गया कि यही राजा का लड़का है और रानी उसकी मां है। इस बार मुकदमा जीत लिया गया और रानी ने अपने मृतक पति के राज्य के स्वामित्व को बचा लिया।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष