Wednesday, December 28, 2011

आमेर खजाने का इतिहास

नेहरू खान  वंश भाग-12
अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी
प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय


मानसिंह अकबर का साला व सेनापति था। देश के राजाओं को हरा कर उसने अकूत सम्पत्ति लूट कर आमेर किले के तहखाने में रखा हुआ था। आर्यों को अंधकार में रखा जा रहा है। आमेर खजाने से देश का लूटा हुआ 60 ट्रक सोना, हीरा और जवाहरात, जो खरबों महासंख की सम्पत्ति है, जिसे आपातकाल में इंदिरा व संजय ने मिल कर लूटा था और जिसे विदेश में उसी समय जमा करा दिया गया था, सोनिया के अधिकार में है। यह जनता व देश की सम्पत्ति नाजायद रूप से सोनिया के पास विदेशी बैंकों में पड़ी है। यह खजाना यदि भारत आ जाए तो भारत फिर सोने की चिड़िया हो जाएगा। इसी संपत्ति के बल पर रिश्वत दे कर जजों से इसने चोर राजीव को निर्दोष सिद्ध कराया है। इस सम्पत्ति को भारत में लाने के लिए आर्यावर्त जनता का सहयोग चाहती है। यह दुरूह कार्य है। बिना देश की सत्ता पर अधिकार किए इस कार्य को पूरा नहीं किया जा सकता। सोनिया से सम्पत्ति वापस लेने के लिए आर्यावर्त से जुड़ें। चुनाव आयोग को चाहिए कि चोरनी सोनिया के मताधिकार छीन ले। जो भी मतदाता इस चोरनी और इसकी देश हत्यारी कांग्रेस पार्टी को मत या समर्थन देता है, मानवता का निकृष्टतम शत्रु है। जिसे भी अपने सम्पत्ति, बहन-बेटियों और देश की रक्षा करनी हो वे आर्यावर्त को सहयोग दें। आर्यावर्त ने मानवता के शत्रु इस्लाम और ईसाइयत जैसे अपराधी मजहबों को समूल नष्ट करने के लिए एक युद्ध छेड़ रखा है। जिन्हें भी उपासना की स्वतंत्रता और सम्पत्ति का स्वामित्व चाहिए, वे प्रतिभा सरकार को कर न दें। आर्यावर्त की सहायता करें। सहायता मात्र मानव रक्षा संघ के दान पात्र में ही स्वीकार किया जाएगा।
इतना ही नहीं इंदिरा खान ने यह सुनिश्चित किया कि सभी हिंदू संस्थाएं उसकी मुट्ठी में रहें। इस दिशा मे उसने पहला हमला रामकृष्ण मिशन पर किया। मिशन के ढुलमुल व कमजोर प्रमुख स्वामी रंगनाथनंद को तब तक ढंडा गरम करती रही जब तक वह उसकी मुट्ठी में न हेा गया। फिर उसने मिशन के प्रमुख रंगनाथनंद को धन, सुविधाएं और विदेश यात्राओं की भी सुविधा दी।
इस प्रकार स्वामी विवेकानंद का रामकृष्ण मिशन एक बदबूदार मांस का टुकड़ा रह गया। सर्वधर्म समभाव के बहाने बाकी हिंदू संस्थाओं का भी इंदिरा ने इसी प्रकार सर्वनाश किया।
सिक्ख सेनानायकों जगजीत सिंह अरोरा और अर्जुन सिंह के पराक्रम को इंदिरा पचा न सकी। उसकी गैर मुसलमानों के समूल नाश की योजना के विपरीत इन रण बांकुरों ने पूर्वी पाकिस्तान में जनरल नियाजी से पूरी सेना सहित आत्मसमर्पण के कागजों पर हस्ताक्षर करा लिए थे। गैर मुसलमानों के कवच सिक्खों को अपमानित करने के लिए मानेक शॉ, फील्ड मार्शल और हीरो बना दिए गए, जो इस आपरेशन में कहीं भी नहीं थे। मोहनदास करमचंद गांधी के 1947 के गैर मुसलमानों को मिटाने के प्रयास के बाद एक बार फिर इंदिरा का भी वही प्रयास विफल हो गया। लूट का वर्चस्व स्थापित न हो सका। उत्तरदायी सिक्ख थे। ऐसा कब तक चलेगा। इस प्रकार तो लूट का साम्राज्य स्थापित ही नहीं हो सकेगा। ऐसा विचार इंदिरा ने किया। लूट के वर्चस्व के लिए कुछ न कुछ तो होना ही चाहिए। जरूरत है गैर मुसलमानों का समूल नाश क्यों कि यही लूट विरोधी हैं। समाजवाद और इस्लाम तो लूट के पोषक सिद्धांत हैं। गैर मुसलमानों को मिटाने के लिए आर्यों के कवच सिक्खों को मिटाना आवश्यक है। आखिर ये सिक्ख ही थे, जिनके दसों गुरु वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए शहीद हो गए। जिन्होंने कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में रक्षा की। ऐसा विचार इंदिरा के मन में आया। बंगलादेश इस्लामी राज्य बन गया। पाकिस्तान इस्लामी राज्य पहले ही था। भारत 1947, 1965 और 1971 में भी इस्लामी राज्य न बनाया जा सका। तब भी सिक्ख आड़े आए और अब भी। अतः सिक्खों को मिटा दो। परंतु सिक्ख गाजर मूली होते तो 1947 में ही मिटा दिए गए होते। उपाय क्या किया जाए? इंदिरा ने मार्ग ढूंढ़ ही लिया। उपाय था सिक्खों को उनके भाइयों से लड़ाना। सो भिंडरवाले को इंदिरा ने सहायता दी। अंततः जहां हजरत बल न तो छुआ गया और न उसमें घुसे मात्र 40 आतंकवादी मारे जा सके, वहीं अकाल तख्त आनन फानन में ध्वस्त हुआ और दस हजार से अधिक सिक्ख भून दिए गए। आर्यों को मिटाने के लिए उनके कवच सिक्ख नष्ट कर दिए गए।
इस खूंखार दुष्ट मुसलमानी इंदिरा को, जिसे इसके दलाल दुर्गा का अवतार कहते थे, अपने कुकृत्यों का फल भोगना पड़ा। जिस इंदिरा ने पैसे के लिए नागरवाला की हत्या कराई, राज्य के लिए लाल बहादुर शास्त्री को जहर दिलवाया, वह अंत में 30 अक्टूबर, 1984 को अपने ही सुरक्षा कर्मियों की गोलियों से छलनी की गई एक मांस का पिंड बन कर रह गई। एक बार फिर लूट का वर्चस्व लागू न हो सका। तब तक समाजवाद का अंत नहीं हुआ था।
मानव मात्र अपने परिश्रम का उपभोग न कर सके। पुनः वैदिक सभ्यता व राज्य न आने पाए। इसके लिए दूषित नेहरू गांधी  वर्णसंकर मुसलमान राजवंश ने एक इटालियन औरत सोनिया को मैदान में उतार दिया है। यदि आप चाहें तो वैदिक सभ्यता के सूर्य को उगने से नहीं रोका जा सकता। अन्यथा परिणाम क्रमवार दुरूहतर हो रहे हैं। यदि इंदिरा का पूरा शरीर गोलियों से छलनी हुआ तो भी शरीर पूरा प्राप्त हुआ। राजीव का तो सिर ही नहीं मिला। कौन जाने? सोनियां की बोटियां भी न मिलें!
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष