Friday, December 23, 2011

इंदिरा गांधी ने कैसे हिन्‍दुओं को मूर्ख बनाना प्रारंभ किया






नेहरू खान  वंश भाग
-10
अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी
प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय
जिस दिन मुसलमान कत्ल करना बंद कर देंगे, लोक/लूट तंत्र में वे अनावश्यक हो  जाएंगे। यही तो लोक/लूट तंत्र की सेना हैं। इन्हीं के बल पर कांग्रेस ने देश के नागरिकों की भूमि, सोना, बैंक में जमा द्दन, यानी जो कुछ लूट सकते थे, सभी कुछ लूट लिया। परिवार नियोजन, जो मुसलमानों पर लागू की नहीं, के बहाने सभी आर्यों  को नपुंसक बना दिया। ठाकरे ने एनरान से करोड़ों रूपए ऐंठ लिए।
कल्पना कीजिये कि यदि आप किसी की वस्तु छीन लेते हैं तो क्या होता है? समाज आप की निंदा करता है. पुलिस आप को पकड़ लेती है और न्यायाधीश आप को दंड देता है. आज के समाजवादी और इस्लामी सिद्धांत इन परेशानियों से मुक्ति के लिये लागू किये गये हैं. तथाकथित पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि सारी दुनियां अल्लाह की है और लूट का माल भी अल्लाह का. कुरआन 2.2558.1. कार्ल मार्क्स ने कहा कि सारी सम्पत्ति समाज की है. इस प्रकार इन लूट के सिद्धांतों ने अपराधियों को सारे खतरों  से मुक्ति दे दी है. सूक्ष्म अध्ययन कीजिये भारत का संविधान लूट के लिए ही पंथनिरपेक्ष और समाजवादी है।
अर्थशास्त्र का सिद्धांत  है कि वस्तु का मूल्य मांग और पूर्ति के बीच अंतर के द्वारा निर्धारित यदि पूर्ति बाधित  हो जाये तो मांग बढ़ेगी. मनुष्य राज्याधिकारी के पास जाने के लिये विवश हो जायेंगे. पूर्ति को बाधित करने का उपाय है उत्पादन पर रोक. चूंकि उपभोक्ता वस्तुयें श्रम का परिवर्तित रूप हैं अतः श्रम के घंटे कम होते चले गये और आज श्रमिक बिना श्रम वेतन लेने का आदी हो चुका है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 के अधीन ऐसे काम चोरों को नौकरी से भी नहीं निकाला जा सकता है. न कारखाने बंद किये जा सकते हैं.
आवश्यक वस्तुओं के अकाल होने से राज्य को स्वतः कोटा, परमिट, लाइसेंस और राशन ब्यवस्था लागू करने का अवसर मिलता है. तब मिलती है लूट की खुली छूट. यह लूट तब तक निर्बाध  गति से चलती है जब तक लूट के माल का हिस्सा शासकों के पास पहुंचता रहता है. जब हिस्सा नहीं पहुंचता तो आयकर, फेरा, कोफेपोसा, सीबीआई जैसे विभाग अपना काम चालू कर देते हैं. उदाहरण के लिये जब तक सुखराम ने राव को हिस्सा दिया तब तक उनका कुछ न बिगड़ा और ज्यों ही देवगौड़ा को हिस्सा न मिला वे गिरफ्तार हो गए.
इंदिरा खान (गांधी) उर्फ फरजाना बेगम
तथाकथित ऐय्याश छलिया ( मुबारक अली के अवैध संतान) जवाहरलाल नेहरू (नेहर का अरबी अर्थ बड़ा नाला है।) की पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी की कहानी प्रारम्भ करने के पूर्व श्री के.एन. राव की द नेहरू डिनैस्टीके पृष्ट 20 को उद्धृत करता हूं जिसमें वे लिखते हैं,
नेहरू राजवंश के सभी लेखकों ने पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर निम्नलिखित ढर्रे पर उनका जीवन वृत्तांत प्रस्तुत किया है,
1. ई. सन् 1900 के पूर्व, जब जवाहर 11 वर्ष का था, के घटना क्रमों यथा जवाहर इलाहाबाद यानी हत्यारे, लुटेरे और ब्यभिचारी अल्लाह के शहर मीरगंज के वैश्यालय में पैदा हुआ, को छिपाना।
2. आनंद भवन (पुराना इशरत मंजिल) कैसे प्राप्त किया गया अथवा खरीदा गया? को छिपाना।
5. सीधी-साधी कमला कौल का पश्चिमी और इस्लामी सभ्यता से ओतप्रोत जवाहर से विवाह कैसे हो गया? निर्णय किस प्रकार और क्यों लिया गया? इन तथ्यों को छिपाना।
7. क्या कमला के साथ दुर्व्‍यवहार हुआ। इस तथ्य को छिपाना।
श्री के. एन. राव लिखते हैं कि तथ्य आज भी छिपाए जा रहे हैं।
तथ्य यह है कि बेचारी कमला के साथ जवाहर और उसकी दोनों दूषित बहनें नान ( जो बाद में अपने बाप मोतीलाल के नौकर सयूद हुसेन के साथ भागने के बाद विजयालक्ष्मी बनीं) और कृष्णा ( जो बाद में हथीसिंह बनी) अत्याचार करती रहीं ।
कमला अकेले जीवन ब्यतीत करती थी। ब्यभिचारी तथाकथित पंडित जवाहर, जो वास्तव में मुसलमान मुबारक अली की नाजायज संतान था और जनेऊ तक नहीं पहनता था, ने कमला के साथ वैवाहिक जीवन कभी नहीं बिताया। कमला के साथ एकमात्र सहानुभूति रखने वाला मोतीलाल के मालिक मुबारक अली का लड़का मंजूर अली था। इंग्लैंड में दीक्षित मंजूर इंदिरा का अवैध पिता था। इस प्रकार सच तो यह है कि इंदिरा जवाहर की बेटी ही नहीं थी। वह कमला और मंजूर की संतान थी।
यह रहस्योद्घाटन इंदिरा और जवाहर की बातचीत द्वारा हुआ, जिसे जवाहर के कार्यालय के बगल के कार्यालय के मुसलमान वकील मालिक मुबारक मंजूर ने सुन लिया। बातचीत का कारण इंदिरा का विदेश में बसने का फैसला था, जिस के कारण जवाहर क्रुद्ध था। इंदिरा फिरोज खान, जो, मोतीलाल के पंसारी नवाब खान का बेटा था, से अत्यधिक प्यार करती थी। फिरोज को इंदिरा से सहानुभूति थी, जिसे ब्यवहारिक तौर पर अनाथ बना कर बुआओं ने उपेक्षित कर रखा था, अपमानित व उपेक्षित मां दीर्घकाल से बीमार थी, बाप जवाहर नई औरतों के खोज में और जारजों को पैदा करने में लगा रहता था। इंदिरा की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया गया। उसे आक्सफोर्ड में भर्ती कराया गया, जहां से वह लापरवाही के कारण निकाल दी गई। फिर उसे टैगोर के शांतिनिकेतन में भर्ती कराया गया। वहां से दुष्चरित्रता के कारण निकाल दी गई। इस प्रकार इंदिरा बिना शिक्षा के अनाथ के रूप में पली।
इंदिरा को अपने अर्ध इस्लामी अभिभावकों का पूरा ज्ञान था। मां कमला के इच्छा के विरुद्ध उसने फिरोज, जो स्वयं पारसी मां और मुसलमान नवाब खां की संतान था, से निकाह किया। जैसे ही इंदिरा ने कलिमापढ़कर इंग्लैंड में निकाह कर लिया, देश के हत्यारे व अंग्रेजों के एजेंट मोहनदास करमचंद गांधी  नामक बूढ़े कौवे ने जवाहर को आदेश दिया कि वह फिरोजखान को शपथपत्र द्वारा घांधी एक पारसी जाति का उपनाम, घोषित करने के लिए दबाव डाले। लेकिन मंद बुद्धि फिरोज ने शपथपत्र द्वारा अपना नाम फिरोज गांधी रख लिया। इस प्रकार 1947 से ही आज तक भारत में मुसलमान जारजों का शासन चला आ रहा है। यही कारण है कि इस्लाम के विकास, पोषण और रखरखाव में ही लोक/लूट तंत्र आज तक संलग्न है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस दुर्घटना के लिए मोहनदास करमचंद गांधी का इस्लामी लूट वाद का संरक्षण उत्तरदायी है।
इंदिरा के लिए अपनी सही पहचान छुपाना आवश्यक हो गया। गैर मुसलमानों को मूर्ख बनाने के लिए उसने तिलक लगाना, मंदिर जाना, जो इस्लाम में निषिद्ध है, आदि प्रारम्भ कर दिया। लेकिन सभी लोग मूर्ख नहीं बने। जगन्नाथ मंदिर में इंदिरा को घुसने ही नहीं दिया गया। सच्चे मन से देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षों ने बवाल मचाना शुरू किया परंतु पारिवारिक गुप्त बातों के खुलने के भय से इंदिरा ने विरोधोंपर विराम लगवा दिया। तत्पश्चात् नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में राजीव और सोनिया को नहीं घुसने दिया गया। जिसने एक मात्र जवाहर नामक दादा नहीं नाना के नाती राजीव को क्रुद्ध किया जिसने कभी अपने असली दादा के नाम का उल्लेख ही नहीं किया। आज भी पूछे जाने पर यही बताया जाता है कि राजीव के दादा का नाम जवाहर था और भारत में आज तक एक भी ऐसा बुद्धिमान पैदा नहीं हुआ जो पूछ सके कि राजीव के बाप के बाप का क्या नाम था?
पहले निकाह के तुरंत बाद इच्छुक जवाहर ने इंदिरा के वैदिक विवाह का प्रबंध  किया। गैर मुसलमानों को बताया गया कि फिरोज हिंदू बन गया है। उसने ( इस्लाम नहीं?) पारसी मजहब छोड़ दिया है और तब इंदिरा का विवाह किया गया है। यह एक ठगी थी जिसे बहुत लोग जानते हैं परंतु किसी ने इस ठगी का विरोध  ही नहीं किया। यही छलावे देश के दुर्दिन के कारण हैं।
यद्यपि इंदिरा मुस्लिम बाप, मंजूर अली, की लड़की थी। तथापि उसका पालन पोषण इस्लामी वातावरण में नहीं हुआ। इस्लामी रीतिरिवाजों की इंदिरा की शुरूआत फिरोज खान से निकाह के बाद प्रारम्भ हुई। शास्त्री को दूध में जहर दिलाने में पाकिस्तान के अयूब खान ने इंदिरा की सहायता की। जहर अबुल कलाम आजाद के रसोइए ने दिया। केंद्र सरकार का यह सेवक शास्त्री को जहर दे कर पाकिस्तान भाग गया। जब तक यह रसोइया पाकिस्तान में जीवित रहा इंदिरा उसे पेंशन की राशि भेजती रही।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष