बच्चे (जवाहर) का जन्मः
अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
प्रस्तुति: डॉ0 संतोष राय
इसी बीच मोतीलाल की पत्नी गर्भवती हो गई। एक सुहावने प्रातः अपने भारी पांव लिए मोतीलाल के साथ गंगा स्नान को गई। एक सन्यासी ने उन्हें देखा और मोतीलाल को एक किनारे ले जा कर झिड़का कि उसने जिस गर्भ को ठहरने दिया है वह भारत को बर्बाद कर देगा। सन्यासी के पास भविष्य को पढ़ने की योग्यता थी। उसने मोतीलाल को गर्भ को जहर देने की सलाह दी, ताकि गर्भ नष्ट हो जाए। पत्नी दूरी के कारण सारी बात तो न सुन सकी परंतु जहर शब्द सुन लिया। मोतीलाल पत्नी के पास झाड़ सह कर वापस आया और पत्नी को समझाया कि सन्यासी ने लड़के का नाम जवाहर रखने के लिए कहा है। यह पता नहीं कि भावी मां ने, चिरस्थाई झूठे मोतीलाल की बात का विश्वास किया या नहीं।
मोतीलाल ने अपने मालिक मुबारक से उसके निवास इशरत मंजिल में भावी संतान के जन्म के लिए अनुरोध किया। मुबारक ने ऐसा नहीं होने दिया। मुबारक ने माना कि बच्चा उसी का है। लेकिन वह अपने घर में इसका जन्म नहीं होने देगा। शरीयत के अनुसार वर्णसंकर का भी संपत्ति पर उतना ही अधिकार है जितना अपनी संतान का। मुबारक ने जच्चा बच्चा का खर्च वहन करना स्वीकार किया और अंत में बच्चा जवाहर मीरगंज के वैश्यालय में ही पैदा हुआ। जैसे ही जवाहर प्रधान मंत्री बना उसने वह मीरगंज का मकान ही गिरवा दिया और अफवाह फैलाया कि जवाहर आनंद भवन में पैदा हुआ था। याद रखिए उसके जन्म समय में कोई आनन्द भवन नहीं था। उस समय वह इशरत मंजिल ही था। लेकिन भारत में परेशानी में डालने वाले प्रश्न कोई नहीं पूछता। इसी प्रकार तथाकथित गैर मुसलमान राजीव के पिता का क्या नाम था? अथवा क्यों इंदिरा व फिरोज ने शपपथपत्र द्वारा अपने नाम गांधी रख लिये? अथवा कैसे जवाहर की मृत्यु छूत यानी संक्रमण की बीमारी सूजाक यानी आत्यक रोग से हुई, जिससे वह मरा? क्या ऐसा किसी से हाथ मिलाने से हो गया या खुले में मुंह पोंछने से हो गया? किसी ने नहीं पूछा।
मुबारक का संबंध बड़े प्रभुत्वशाली मुसलमानों से था। अवध के नवाब ने बच्चे जवाहर की वैश्यालय में परवरिश का विरोध किया और अपने महल में परवरिश के लिए कहा। इस प्रकार बालक जवाहर ने जन्म के शीघ्र बाद ही मीरगंज छोड़ दिया और राजमहल में रहने व परवरिश के लिए आ गया। जवाहर राजमहल में दस वर्ष की उम्र तक रहा। इसके बाद पढ़ने के लिए लंदन चला गया। मोतीलाल ने तब तक इतना पैसा कमा लिया था कि अपने जवाहर की पढ़ाई पर ब्यय वहन कर सकता था।
नवाब के बगल में खड़े जवाहर की आदमकद तस्वीर लखनऊ के पास महल के पहले मंजिल में लगी थी। नवाब के महल में परवरिश के कारण ही जवाहर गर्व से कहता था कि उसकी परवरिश विदेश में हुई, इस्लाम के तौर तरीके से उसका विकास हुआ और हिंदू तो वह दुर्घटनावश ही था!
मीरगंज के वैश्यालय में दो बच्चों का और जन्म हुआ था। दोनों लड़कियां थीं। यह पता नहीं कि क्या वे भी मुबारक की नाजायद संतानें थीं? शायद हां और नहीं भी। लेकिन तब मोतीलाल, एक सिद्ध मनचले ऐय्याश, के भी दो नाजायज संतानें शेख अब्दुल्ला और सयूद हुसेन, जो उसकी बेटी विजया लक्ष्मी को भगा ले गया था, थीं। यही वह कारण था जिसने मोतीलाल को हुसेन और विजयालक्ष्मी को शादी करने से रोका था। प्रेमी हुसेन के साथ भाग जाने के बाद दोनों कुछ दिन साथ रहे थे। यही कारण है कि विजया लक्ष्मी की पहली बेटी चंद्रलेखा की सूरत हुसेन से मिलती है जो उसका पिता था न कि आर. एस. पंडित से। किसी को भी चंद्रलेखा, नयनतारा और रीता की सूरतों को मिलाने से यह पता लग जाएगा कि बाद की दोनों लड़कियां ही पंडित की हैं पहली चंद्रलेखा नहीं।
छलिया जवाहर लालः
जवाहर लाल एक अलग तरह का बैरिस्टर बना। टिनिटी कालेज में उसका मुख्य विषय वनस्पति विज्ञान था। उस समय, मोहम्मद अली जिन्नाह, एक अन्य शिया मुसलमान, निवास व कार्यालय मुंबई के मलाबार हिल्स में, रहता था। उसकी वकालत खूब चलती थी। सदा के ज्वलनशील जवाहर ने अपना कार्यालय वहीं खोला। उसकी वकालत नहीं चली। एक दिन जवाहर को अपने महिला कर्मचारी को, अपने ही कार्यालय में, जो पारसी थी, छेड़ने के कारण पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सेसन अभिलेखागार, मुंबई में आज भी वे कागजात सुरक्षित हैं। मोतीलाल भाग कर मुंबई गया और अपने हद और प्रभाव का प्रयोग कर जवाहर को छुड़ा कर इलाहाबाद ले आया। जवाहर की वकालत खत्म हो गई। वह राजनीति करने लगा। यहां यह बता दूं कि जवाहर की एक से दस वर्ष तक की कोई तस्वीर उपलब्ध नहीं है। इस दौरान वह नवाब के महल में रहा। मोतीलाल के वैश्यालय में नहीं। तस्वीर बनाना इस्लाम में निषिद्ध है। दस वर्ष के हो जाने के बाद वह विलायत चला गया। दोनों बहनों को जवाहर से कुछ लेना देना नहीं था। बहनों के बचपन की बहुत तस्वीरें हैं परंतु जवाहर की एक भी नहीं। जवाहर के खर्च का बड़ा भाग मुबारक ने दिया था। मोतीलाल के पास तब इतने पैसे नहीं थे। इटावा के विधवा रानी की कृपा से मोतीलाल के पास काफी पैसा आ गया।
विधूर जवाहर से ईसाई बच्चे का जन्मः
जैसा बाप वैसा बेटा बल्कि बाप से आगे ही। जवाहर ने अपने भारत के प्रधान मंत्रित्व का पूर्ण फायदा उठाया। जवाहर की सुंदर औरतों की तलाश और आधीरात में गुप्त समागम अंदर खाने सबको अच्छी तरह पता लग गई। जवाहर ने एक हिंदू नन को गर्भवती कर दिया। उसे अस्पताल नहीं भेजा गया बल्कि वैरागिनियों की कुटी यानी ननरी में भेजा गया। क्यों कि अस्पताल भेजने पर लोगों को मालूम हो जाता। यही कारण है कि ईसाइयों को पंथनिरपेक्ष भारत में विशेष दर्जा प्राप्त है। ताकि वे अपने ओठ सिले रखें और जब चाहें ब्लैक मेल कर सकें। विधूर जवाहर के पुत्र को भारत के बाहर एक अच्छा ईसाई जार्ज बनाने के लिए भेज दिया गया। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। भारत पर सदा ही शासन जारजों का रहा और आज भी है। इसे आप जवाहर के निजी सचिव कैथोलिक ईसाई मथाई की पुस्तकों, माई डेज विथ नेहरू और नेहरू युग की स्मृतियां से पढ़ सकते हैं।
जवाहर, झूठाः
सदावहार झूठा नेहरू, जो लाउडस्पीकर पर लालकिले की प्राचीर से दिल्ली चलो और जै हिंद का नारा लगाता था, अपने आफिस में आते ही क्लिमेंट एटली, तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री, को पत्र लिखवाता था, कि वह स्टालिन पर नेता जी को सौंपने के लिए, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध घोषित कर दिया था, दबाव डाले। ताकि नेता जी पर अभियोग चलाया जा सके।
ज्यों ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी को, अपने मुस्लिम डाक्टर से जहर की सुई लगवा कर, शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर में मरवा दिया, जवाहर लंदन से तुरंत उड़ आया और मुखर्जी जी की निजी डायरी अपने कब्जे में ले ली और उनकी दुखिया मां को बार बार के गुहार पर भी कभी नहीं लौटाई।
यद्यपि नेहरू को इसका प्रतिकार भी मिला। जिस व्यक्ति को भाग्य ने 15 अगस्त 1947 के रात्रि में सत्ता के सर्वोच्च स्थान पर बिठाया, वह, जैसा वे बताते हैं, दिल का दौरा पड़ने से नहीं, बल्कि सूजाक की बीमारी से मरा। और मुझ पर भरोसा कीजिए, यह बीमारी किसी अल्पाहारालाय के लोटे में के पानी पीने से नहीं हुई। बल्कि वैसे ही हुई जैसे कि अन्य लोगों को होती है, यानी जिस औरत पर भी उसके गंदे हाथ पहुंच सकते थे, उससे अवैध और अविराम संभोग से ही हुई।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष