Friday, December 9, 2011

नेहरू खान वंश









प्रस्‍तुति:  डॉ0 संतोष राय
नेहरू खान वंश
गंगाद्दर कौल या फैजुल्ला खान भाग-1
मैकाले ने कहा थाः-
मैकाले ने 2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश संसद मे दिए गए अपने भाषण में कहा था, ‘‘मैने पूरे भारत में चारो ओर दौरा किया और मैने एक भी व्यक्ति नही ँ देखा, जो भिखारी हो, चोर हो, इस देश में इतनी सम्पदा, इतना उच्च चरित्र, लोगोँ में इतनी योग्यता है कि मै नहीं सोचता कि इस देश को जीता जा सकेगा, जब तक कि इस देश की रीढ़ को न तोड़ दिया जाए जो इस देश की आध्यात्मिक व पैतृक सम्पत्ति है और इसलिए मैं प्रस्ताव रखता हूं कि हम उसकी प्राचीन शिक्षा प्रणाली, उसकी संस्कृति को बदल दें ताकि वह यह सोचने लगे कि जो कुछ विदेशी व आंग्ल है, वह उनसे अधिक महान है, इस प्रकार वे स्वाभिमान, अपनी स्वाभाविक संस्कृति को खो देंगे और सचमुच हमारी इच्छानुसार हमारे अधीन हो जाएंगे।’’
यहाँं ध्यान देने योग्य बात यह है कि मुसलमान ई00 712 से ही मंदिर तोड़ते, नारियों का बलात्कार करते और लूटते रहे लेकिन फिर भी भारत सोने की चिड़िया व चरित्रवान रहा। मैकाले ने गुरुकुल समाप्त कर दिया। वेद गरड़ियों के गीत घोषित कर दिया। धर्मस्थल व सेवासंस्थान सरकार के अधीन कर लिया। शुचिता छुआछूत हो गई। सती अपराधिनी हो गई। परिवार मिटा दिए गए। मैकाले ने ही हमारा चारित्रिक पतन किया। फिर भी अभी हमारा पूर्णरूपेण पतन नही ँ हो पाया है। आज भी हमारे यहाँ साले, बहनोई, फूफे, बुआएं, मामा, मामी, मौसी, मौसे आदि पाए जाते हैं। हमारे देश में धर्मान्तरित ईसाइयों के यहाँ भी कुमारी माताएं नही ँ पाई जातीं। छात्राओं को गर्भ निरोधक गोलियाँ खिलाने की सरकारी प्रथा हमारे यहाँ नही ँ है। हमारी कन्याएं आज भी 13 वर्ष से कम आयु में बिना विवाह गर्भवती नही ँ होतीं। भारत की सरकारों ने आज तक पुरुष समलैंगिक व नारी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नही ँ दी थी।

गंगाद्दर कौल या फैजुल्ला खान भाग-1
नेहरू वंश के बारे में कुछ नए तथ्य,
हमें नेहरुओं के बारे में कुछ नई सूचनाएं प्राप्त हुई हैं, जिसे हम पाठकों को  बताना चाहते हैं। हम आप को सूचित कर चुके हैं कि जवाहर के पितामह यानी दादा का नाम गंगाद्दर कौल था। मुगल राज्य में गंगाद्धर पुलिस अधिकारी  था। वह नहर के किनारे रहता था, इसीलिए इस परिवार ने नेहरू नाम धारण कर लिया। ऐसा बताया जाता है।
अब सूचना मिली है कि गंगधर नकली नाम था। जवाहर का पैतृक पितामह वास्तव में मुगलवंशीय था। तब उसने कश्मीरी हिंदू नाम क्यों धारण किया? हमें जो कारण बताए गए हैं, वे निम्नलिखित हैं,
1857 के गदर में अंग्रेज सभी जगह सभी मुगलों को कत्ल कर रहे थे। ताकि भारतीय साम्राज्य का कोई दावेदार न बचे। उस समय हिंदू अंग्रेजों के निशाने पर नहीं थे। जब तक कि, किसी विशेष परिस्थिति में, पिछले संबंधों के कारण, कोई हिंदू मुगलों का पक्ष लेते हुए न पाया जाए। यही कारण था कि मुसलमानों द्वारा हिंदुओं का नाम अपनाए जाने का उस समय चलन हो चुका था। इसी कारण से, मालूम होता है कि, गंगाधर नाम भी किसी मुसलमान ने, अपनी जान बचाने के लिए धारण कर लिया।
अपने आत्मचरित्र वर्णन में जवाहरलाल लिखता है कि उसने अपने पितामह का मुगल राजवंशीय वेशभूषा में बना चित्र देखा था। अपने संस्मरण में जवाहर की दूसरी बहन कृष्णा हथीसिंह ने लिखा है कि 1857 के गदर के पूर्व गंगाद्दर दिल्ली का शहर कोतवाल था। लेकिन पूरी छानबीन करके लिखे गए अभिलेख ‘‘बहादुर शाह द्वितीय और 1857 का दिल्ली का गदर’’ महदी हुसेन लिखित, ( 1987 का प्रकाशन, प्रकाशक एमएन प्रकाशन, डब्लू-112 ग्रेटर कैलाश भाग 1, नईदिल्ली) के अनुसार 1857 के गदर के आसपास कार्यरत नगर कोतवाल दिल्ली का नाम फैजुल्ला खान था। उसकी नियुक्ति नगर राज्यपाल और कोतवाल मिर्जा मनीरुद्दीन के स्थान पर हुई थी। मिर्जा मनीरुद्दीन पर अंग्रेजों का जासूस होने का आरोप था। इसी कारण से उसे सुल्तान ने नौकरी से निकाला था और राज्यपाल का पद भी समाप्त कर दिया था। उस समय नायब कोतवाल श्री भाव सिंह और लाहौरी गेट के थानेदार श्री काशीनाथ थे। गंगाधर नाम के व्यक्ति का उपरोक्त अभिलेख में कहीं पता नहीं है। स्पष्टतः यह विषय किसी सुयोग्य इतिहासकार द्वारा जांच करने के योग्य है।
1857 में दिल्ली पर कब्जे के बाद अंग्रेजों ने सारा दिल्ली खाली करा लिया। दिल्ली के बाहर लोगों को छोलदारियों में रहना पड़ा। प्रत्येक घर की अच्छी तरह तलाशी ली गई। जिसमें अकूत द्दन मिला। इसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। दिल्ली के बाहरी भागों की भी अंग्रेजों ने तलाशी ली। जो भी मुगल मिला उसे अंग्रेजों ने मार डाला ताकि दिल्ली सिंहासन का कोई दावेदार न बचे। लगभग दो माह बाद हिंदुओं को अपने घरों में वापस जाने की अनुमति दी गई। बाद में मुसलमानों को अपने घरों में वापस जाने की अनुमति मिली।
19वीं सदी के उर्दू साहित्यकारों, विशेषकर ख्वाजा हसन निजामी के साहित्य में, उस समय की मुगलों और मुसलमानों के दुखदायी जीवन परिपाटी का उल्लेख मिलता है। साहित्यकारों ने यह भी बताया है कि किस प्रकार अपनी जान बचाने के लिए मुगल और मुसलमान शहरों को छोड़ कर भाग रहे थे। जवाहर लाल ने भी अपने आत्मचरित्र में लिखा है कि मुगलों से प्रभावित स्थान आगरा जाते हुए रास्ते में अंग्रेजों ने मुगलवेशभूषा के कारण उसके दादा यानी पितामह के परिवार को रोक लिया था। लेकिन कश्मीरी पंडित कहने पर उसके पितामह को जाने दिया था। इस उद्धरण से इस बात को बल मिलता है कि हो न हो फैजुल्ला खान ही गंगाद्दर कौल बन गया था। कुछ काल पहले राजकीय पद के लिए मुगल बताने के लिए कश्मीर का सम्बन्द्द जोड़ा जाता था फिर हिंदू बताने के लिए कश्मीर का सम्बन्द्द जोड़ा जाने लगा। अतः चौंकिए नहीं। इस देश पर शासन मुसलमानों का ही रहा है। मोतीलाल का बाप गंगाधर कौल वास्तव में मुसलमान था। इस विस्फोटक सत्य की खोज का श्रेय जाता है श्री अरविंद घोष जी को।
श्री टी.एल. शर्मा अपने गंभीर खोजपूर्ण लेख ‘‘हिंदू-मुस्लिम रिलेशन’’ पृष्ट 3-से-5 ( बी.आर. पब्लिशिंग कार्प, 29/9 शक्तिनगर, दिल्ली 7, 1987) में मसीर उल उमारा के अद्दिकार से लिखते हैं,
‘‘मुगलकाल में अभारतीय वंशज का इतना महत्व था कि उच्च सरकारी पदों के लिए विदेशी मूल के होने का झूठा प्रमाण गढ़ा जाता था। बहुधा वे कश्मीरी लड़कियों से निकाह करते थे ताकि उनका रूपरंग तुर्कों और इरानियों के वंशजों की भांति दिखाई दे।’’ ( आज, इस्लामी पाकिस्तान और बंगलादेश में उच्च पदाधिकारी मुसलमान स्वयं को अरब मूल का बताते हैं।)
इस प्रकार फैजुल्ला खान ने अपना झूठा नाम गंगाधर कौलरख लिया। नेहरू शब्द भी प्रश्न पैदा करता है। यदि नेहरू उपाधि परशियन शब्द नहर के कारण पड़ा तो वहां के अन्य निवासियों ने यह उपाधि  क्यों नहीं धारण किया? मोतीलाल ने ही इस नाम को क्यों चुना?
ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली से भागने के पश्चात मोतीलाल ने अपना सम्माननीय पारिवारिक नाम कौलछोड़ कर नेहरू रख लिया। जिससे इस परिवार के वैवाहिक संबन्द्द कश्मीरी पंडितों से होने लगे। फिर भी यह महत्वपूर्ण बात है कि इस परिवार के सभी नजदीकी संबंध  मुसलमानों से ही रहे। यहां तक कि उनका खानसामा भी मुसलमान ही रहा। इतना ही नहीं नेहरू वंश हिंदुओं के साथ असंतुष्टि अनुभव करते हैं। विशेषकर जवाहरलाल को हिंदू और हिंदी से विशेष नफरत थी। फिर भी इस खान वंश को पूरे भारत में कश्मीरी पंडित कहा जाता है! जो जवाहरलाल नेहरू यज्ञोपवीत नहीं पहनता था, संस्कृत की कौन कहे हिंदी तक को पढ़ नहीं सकता था, इस देश के मूर्ख ब्राह्मण उसके पीछे लग गए। जब इस देश की संस्कृति के सिरमौर ही उसके पीछे लग गए तो जो होना था हुआ। देश बंटा और कंगाल हो गया। वैदिक संस्कृति मिट गई। इंदिरा के जवाहरलाल की पुत्री होने पर भी संदेह है। जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि जवाहर लाल और इंदिरा दोनो अपने मुगल वंश के होने से परिचित थे। सोनिया तक आते आते यह परिवार न तो मुगलवंशी रहा और न अंग्रेज ही रहा। इसकी भी चर्चा हम आगे करेंगे।
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष