Tuesday, December 27, 2011

तीन लाख से अधिक गैरमुसलमानों का बलात्‍कार हुआ था



नेहरू खान  वंश भाग-11

अयोध्‍या प्रसाद त्रिपाठी

प्रस्‍तुति: डॉ0 संतोष राय

इस देश के महान राजनीतिज्ञ श्री चाणक्य ने कूटनीति का एक मूल सूत्र दिया था। वह है पड़ोसी राज्य तत्कालिक शत्रु होता है और पड़ोसी का पड़ोसी तत्कालिक मित्र। पूर्वी पाकिस्तान में आजादी की लड़ाई प्रारम्भ होते ही पाकिस्तान के याहया खान ने श्री लंका के रास्ते फौजी टुकड़ियां भेजनी शुरू कीं। कुल 1 लाख सैनिक गए। एक महामूर्ख भी समझ सकता था कि साधारण नागरिकों के रूप में ए इस्लामी जेहादी थे, जिन्हें गुप्त रूप से लंका के मार्ग से पूर्वी पाकिस्तान भेजा जा रहा था, जिसे भूतपूर्व बौद्ध और अब कैथोलिक लंका की प्रधानमंत्री भंडारनायक को फोन कर के बंद कराया जा सकता था। परंतु लुटेरे को लूट का माल चाहिए जिसे इस्लाम और समाजवाद ही दे सकता था; गैर मुसलमान तो इस लूट में रुकावट हैं अतः इस लूट की रुकावट को समाप्त कराना था और इस प्रकार गैर मुसलमान समाप्त कराए भी गए।
इंदिरा ने पाकिस्तान को हथियार और सैनिक भेजने दिए। बंगालियों का भयानक नरसंहार हुआ। फिर भी इंदिरा ने कुछ न किया। इस प्रकार बंगालियों को मरवा कर वह टैगोर के शांतिनिकेतन से निकाले जाने का बदला ले रही थी और वैदिक संस्कृति यानी लूट और दासता की विरोधी  संस्कृति को मिटाने की अहम् भूमिका भी निभा रही थी। इस प्रकार जब कोई तीस लाख गैर मुसलमान कत्ल हुए और 3 लाख से अधिक गैर मुसलमान महिलाओं का कुरआन के हुक्म से मुसलमान जारजों द्वारा बलात्कार हुआ और भारत शरणार्थियों से पट गया, तो उसे कार्यवाही करनी पड़ी। फिर भी उसने इस बात का ध्यान रखा कि पाकिस्तान को हराने का गौरव सिक्खों को नहीं मिलने दिया जाए। उसने बीच में पारसी मानेक शॉ को घुसेड़ दिया। मानेक शॉ को बाद में फील्ड मार्शल बना दिया गया। बनिया को क्षत्रियों पर राज्य करने के लिए नियुक्त कर दिया गया। क्या कभी किसी ने टाटा के रिश्तेदारों (फिरोजशाहों, नौरोजियों और मेहताओं आदि) को बंदूक चलाते देखा है? इस प्रकार जनरल नियाजी के नेतृत्व में उन 93 हजार अपराधी  अल्लाह के मुसलमानों के आत्म समर्पण का श्रेय इंदिरा ने ले लिया जो ब्यभिचार तो कर सकते थे पर बंदूक नहीं चला सकते थे, जो बलात्कार तो कर सकते थे पर बदला न ले सकते थे।
सिक्ख एक बार फिर वैदिक संस्कृति और देश के सम्मान की रक्षा के लिए काम आए। कश्मीर समस्या को हल करने का यह सिक्खों द्वारा दिया गया महान अवसर था, जिसको इंदिरा ने जान बूझ कर शिमला समझौते के आड़ में गवां दिया। जिस प्रकार राष्‍ट्रहंता मोहनदास करमचंद गांधी  ने कलकत्ता के नरसंहार के लिए उत्तरदायी सुहरावर्दी को दोषमुक्त ही घोषित नहीं किया बल्कि सम्मानित किया उसी प्रकार इंदिरा ने पाकिस्तानी सैनिकों को मात्र बिना शर्त छोड़ा ही नहीं बल्कि जेनेवा समझौते के अनुसार उनको खिला पिला कर स्वस्थ भी बनाया, उनके वेतन भी दिये और उनको कुरआन दे कर ससम्मान बिदा किया, जब कि पश्चिमी सीमा पर पकड़े गए मात्र 54 भारतीय युद्धबंदी छुड़ाए ही नहीं गए और उन्हें पाकिस्तान ने भयंकर यातनाएं दे कर समाप्त करा दिया। जिनका अपराध  यह था कि उन्होंने वैदिक सभ्यता केा समूल नष्ट करने से रोका। कश्मीर समस्या, जिसका समाधान 93 हजार सैनिकों को रिहा करने के बदले में आसानी से हो सकता था, को शिमला समझौते की आड़ में विफल कर दिया। आज इसी शिमला समझौते के गीत पाकिस्तान, यूके और अमेरिका ही नहीं - भाजपा भी गा रही है।
इंदिरा के वैवाहिक जीवन में, मुसलमान पति फिरोज ने अपने स्वाभाविक रुझान को स्पष्ट करना प्रारम्भ कर दिया। मुसलमान अपना स्वभाव कैसे बदल सकता है? राजीव के जन्म के बाद ही फिरोज स्वछंद औरतों के पीछे भागने लगा। अनहोनी होनी थी और हो गई। इंदिरा और फिरोज के वैवाहिक जीवन पर विराम लग गया। संजय तब तक पैदा नहीं हुआ था। जैसे को तैसे के तौर पर इंदिरा ने मेाहम्मद यूनुस, जो वर्षों आनन्द भवन में रह चुका था और नेहरू का पारिवारिक मित्र था, से शारीरिक संबंध  बनाना प्रारम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप संजय पैदा हुआ। नेता जी सुभाष के कागजात राष्‍ट्रीय संग्रहालय में रखने के बजाए नेहरू के निर्देश पर यूनुस ही के कब्जे में रह गए। नेहरू को नेताजी के बारे में बहुत कुछ छिपाना था ताकि नेता जी के साथ क्या हुआ, देश के लोग न जान सकें।
जिन्होंने घ्यान से देखा होगा तो उन्हें ज्ञात होगा कि इंदिरा कितनी चतुराई से मुसलमानी पहनावा पहन कर इस्लामी राष्‍ट्रों की यात्रा करती थी। एक बार सऊदी अरबिया के सरकारी निमंत्रण पर एक इस्लामी प्रदर्शनी में इंदिरा वहां गई थी जब कि वहां मक्का मदीना शहरों में गैर मुसलमान घुस ही नहीं सकता। इसके पूर्व भी सऊदी अरबिया ने उसे काबा में बुलाया था। एक बार इंदिरा को न्यूयार्क, न्यूजर्सी और कनेक्टीकट के अनिवासी भारतीयों को संबोधित  करना था, जिसमें लगभग पचास हजार भारतीय एकत्र हुए थे, परंतु इंदिरा भाषण देने आई ही नहीं। किसी को पता न चला कि वह कहां गई। भारतीय निराश हो कर लौट गए। बाद में पता चला कि वह सऊदी अरबिया के निजी हेलीकाप्टर से इस्लामी प्रदर्शनी देखने स्मिथसोनियन चली गई थी। क्या कोई विश्वास करेगा?
क्रमश:
मानव रक्षा संघ प्रकाशन
अनुवादकः अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी
मूल लेखक: अरविंद घोष